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भंते ! अहे लोयस्स तिरिय लोअस्स, उड्डलोयस्सय कयरे कयरे हितो जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थावे तिरियलोए उड्डलोए असंखेज गुणे, अहे लोए विसेसाहिए।सेवं भंते भंतेत्ति तेरसमसयस्सय चउत्थो उद्देसो सम्मत्तः।।१२.४॥ णेरइयाणं भंते! किं सचित्ताहारा, अचित्ताहारा, मीसाहारा, ? गोयमा ! णो सचित्ताहारा अचित्ताहारा, णो मीसाहारा ॥ एवं असुर कुमारा पढमो णेरइय उद्देसओ णिरवसेसओ भाणियन्वो ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ तेरसम सयस्सय पचमो उद्देसो सम्मत्तो॥ १३॥५॥
4.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावाथे
से
इन तीन में कौन किस से अल्प यावत् विशेषाधिक है ? अहो गौतम ! सबसे छोटा तीछ लोक, उस ऊर्थ लोक असंख्यातगुना उस से अघो लोक विशेषाधिक. अहो भगवन ! आप के वचन सत्य हैं. यह तिर हवा शतक का चतुर्थ उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १३ ॥ ४॥ १ अहो भगवन् ! क्या नारकी सचित्त का आहार करनेवाले हैं. अचित्त का आहार करनेवाले मीश्र का आहार करनेवाले हैं ? अहो गौतम ! नारकी सवित्त व मीश्र का आहार नहीं करते हैं परंतु आचत्त का आहार करते हैं. ऐसे ही असुर कुमारादि सब का कथन प्रथम नरक उद्देशा जैसे जानना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह तेरहवा शतक का पांचवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १३ ॥५॥