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________________ सत्र 48 भावार्थ 8 पंचमान विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र लोए बहुसमे, कहिणं भंते ! लोए सव्वविग्गहिए पण्णत्ते ? गोयमा ! इमीसेणं रयणप्पभाए पुढंवीए उवरिमहेट्ठिलेसु खुडुगपयरेसु एत्थणं लोए बहुसमे एत्थणं लोए सव्वविग्गहिए पण्णत्ते ॥ ३२ ॥ कहिणं भंते ! विग्गह विग्गहिए लोए पण्णत्ते ? गोयमा ! विग्गहकंडए, एत्थणं विग्गह विग्गहिए पण्णत्ते ॥ ३३ ॥ किं संठिएणं भंते ! लोए पण्णत्ते ? गोयमा ! सुप्पइट्रिय संठिए लोए पण्णत्ते, हेट्ठा विच्छिण्णे, मझे संखित्ते जहा सत्तमसए पढमुद्देसए जाव अंतं करेंति ॥ ३४ ॥ एयस्सणं द्वार कहने हैं. अहो भगवन् ! किस स्थान लोक बराबर सम है और किस स्थान सब से संकुचित है ? अहो गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी की उपर व नीचे की क्षुद्रक प्रतर में लोक बहुत सम है." यहां हानि वृद्धि नहीं हैं और वहां पर दी लोक सब से मंकुचित है ॥ ३२ ॥ अहो भगवन् ! कहां पर लोक का शरीर वांका है ? अहो गौतम ! ब्रह्म नामक पांचवे देवलोक की उपर जहां प्रदेश की हानि वृद्धि है वहां प्रायः लोकान्त होता है और वहांपर लोक का शरीर वक्र है ॥ ३३॥ अहो भगवन् ! किस आकारवाला लोक रहा हुवा है ? अहो गौतम ! सुमतिष्ठित लोक रहा हुवा है. अर्थात् सरावले के आ-fo कार मे लोक रहा हुवा है. वह नीचे से विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त वगैरह जैसे सातवे शतक के प्रथम उद्देशे में लोक का वर्णन किया वैसे कहना यावत् अंत करते हैं ॥ ३४ ॥ अधो लोक, ऊर्ध्व लोक व मध्य लोक । imaAAAAmrtmnmannnnnnnvenuemnamnnnnve तेरहवा शतक का चौथा उद्दशा 498
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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