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________________ है पंचमांग विवाह पण्णन्ति (भगवती) सूत्र असंखेजा, केवइया आऊ• ? असंखेजा, एवं जहेव पुढवीकाइयाणं वत्तव्यया तहेव है, सचे गिरवसेसं भाणियन्वं जाव वणस्सइ काइयाणं जाव केवइया वणस्सइ काइया आगाढा ? अणंता ॥ ३० ॥ एयंसिणं भंते ! धम्मत्थिकाय, अधम्मत्थिकाय, आगासत्थिकायंसि चक्किया केइ आसइत्तएवा, सुइत्तएवा, चिट्ठित्तएवा, णिसियत्तएवा, तुयहित्तएवा? णो इणटे समटे, अर्णता पुण तत्थ जीवा ओगाढा। से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ- एयंसिणं धम्मत्थि जाव आगासत्थिकार्यसि णो चक्किया केइ आसइत्तएवा जाव ओगाढा ? गोयमा ! से जहा णामए कूडागारसाला सिया दुहओलित्ता गुत्ता तेउकायिक असंख्यात वायुकायिक व अनंत वनस्पतिकायिक अवगाढित हैं ॥ २१ ॥ जहां एक अप्कायिक अवगाढित है वहां कितने पृथ्वीकायिक अवगाढित है ? अहो गौतम ! असंख्यात पृथ्वीकायिक अवगा-3 दित है असंख्यात अप्कायिक यो सब पृथ्वीकाया जैसे कहना. ऐसे ही तेउ. वायु व वनस्पतिका जानना 7॥३. ॥ अब अस्तिकाय प्रदेश निषेधन द्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! इन धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय 6ि व आकाशास्तिकाय में क्या कोई बैठने को, सोने को, खडा रहने को, चलने को, व त्रायण [रक्षण] | करने को क्या समर्थ है। अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है अर्थात समर्थ नहीं है. और भी वे । Pat: तेरहवा भतक का चौथा उद्देशा 48
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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