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भावार्थ
जहा धम्मथिकास एवं सव्वे सहाने मत्थि एकोवि भानियव्यं परट्ठाणे आदिला तिष्णि असंखेजा भाणियन्त्रा, पच्छिला तिष्णि अनंता भाणियव्त्रा जाव अद्धा समत्ति,
जाव केवइया अद्धा समया ओगाढा ? णत्थि एक्कोवि ॥ २८ ॥ जत्थणं भंते ! एगे पुढीकाइए ओगाढे. तत्थणं केवइया पुढवीकाइया ओगाढा ? असंखेज्जा, केवइया आउकाइया ओगाढा ? असंखेज्जा, केवइया तऊकाइया ओगाढा ? असंखेज्जा, केइया वाऊकाइया ओगाढा ? असंखेज्जा, केवइया वणस्सइ काइया ओगाढा ? अनंता ॥ २९ ॥ जत्थणं भंते ! एगे आउकाइए ओगाढं तत्थ केवइया पुढवी • ? कावा के एक भी प्रदेश नहीं हैं शेष सब धर्मास्तिकाय जैसे कहना. ऐसे ही सब को अपने स्थान { नहीं हैं वैसा कहना और अन्य स्थान में पहिले के सीन के प्रदेश असंख्यात कहना और पीछे के तीन के प्रदेश अनंत कहना. यों अद्धासमय तक कहना ॥ २८ ॥ अब जीव अवगाहना द्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! जहां एक पृथ्वीकायिक अवगादित है वहां किसने अन्य पृथ्वीकायिक अवगादित हैं ? अहो गौतम ! एक पृथ्वीकायिक अवगाह में असंख्यात पृथ्वीकायिक अवगाहित हैं. अहो ( अपकाशिक अवगादित हैं ? अहो गौतम ! असंख्यात अपकायिक अवगादित हैं,
भगवन् ! कितने ऐसे ही असंख्यात
49 अनुवादक- बालग्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी