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________________ - १.८०१ एक्को, केवइया अहम्मस्थिकाय ? एको, केवइया आगासस्थिकाय ? एक्को, केवइया । जीवत्थि. ? अणंता ॥ एवं जाव अद्धासमया ॥ २६॥ जत्थणं भंते ! धम्मत्थिकाए ओगाढे तत्थ केवइया धम्मस्थिकायपदेसा ओगाढा? णस्थि एकोवि, केवइया अहम्मत्थि? असंखेजा, केवइया आगासत्थि ? असंखेजा, केवइया जीवास्थकाय ? अणंता॥ एवं जाव अहासमया ॥ २७ ॥ जत्थणं भंते ! अहम्मत्थिकाए ओगाढे तत्थ केवइया धम्मस्थिकाय• ? असंखेजा, केवइया अहम्मत्थि० पत्थि एक्कोवि, सेसं प्रदेश अवगाह कर रहे हुवे हैं। अहो गौतम ! एक, अधर्मास्तिकाय एक, आकाशास्तिकाय एक, जीवास्तिकाय अनंत, पुद्गलास्तिकाय अनंत, और अद्धा समय अनंत तक कहना ॥ २६ ॥ अहो भगवन् ! जहां संपूर्ण धर्मास्तिकाय अवगाह कर रही है वहां कितने धर्मास्तिकाय प्रदेश अवगाह कर रहे हुवे हैं ? अहो म! एक भी प्रदेश अवगाह कर नहीं रहे हवे हैं, अधर्मास्तिकाया के असंख्यात प्रदेश अवगाह कर रहे हुवे हैं, आकाशास्तिकाया के असंख्यात प्रदेश अवगाह कर रहे हुवे हैं, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्ति काय व अद्धा समय के अनंत प्रदेश अवगाह कर रहे हुवे हैं ॥ २७ ॥ अहो भमवन् ! जहां अधर्मास्ति13काया है वहां पर धर्मास्तिकाया के कितने प्रदेश हैं ? अहो गौतम ! असंख्यात, प्रदेश हैं. अधर्मास्ति- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 488 तेरहवा शतकका चौथा उद्देशा 18 भावाथ winianmomraninainik 8 ।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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