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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
"सिय एक्को, सिय दोण्णि, सिय तिण्णि ॥ एवं अहम्मत्थिकायस्सवि ॥ एवं आगासत्थिन कायस्सवि सेसं जहेव दोण्हं ॥ एवं एकेको वड्डेयव्यो पएसो आदिल्लहिं तिहिं अत्थिकाएहिं सेसेहिं जहेव दोण्हं जाव दसण्हं सिय एक्को, सिय दोपिण, सिय तिण्णि जाव सिय दस ॥ संखजाणं सिय एक्को, सिय दोण्णि जाव सिय दस, सिय संखेजा ॥ असंखे.. जाणं सिय एक्को जाव सिय संखेजा सिय असंखेजा, जहा असंखेज्जा,” एवं अणंतावि
॥२५॥ जत्थणं भंते ! एगे अद्धासमए ओगाढे तत्थ केवइया धम्मत्थिकायप्पदेसा? शेष जैसे दो पुद्गलास्तिकाय प्रदेश का कहा वैसे ही कहना. इसी तरह धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय व आकाशास्तिकाय इन तीन में एक २ बढाना और शेष तीन में दो पुद्गलास्तिकाय प्रदेश जैसे कहना. इस तरह चार पांच यावत् दश तक कहना. दश पुद्गलास्तिकाय प्रदेश में क्वचित् एक, क्वचित् दो, क्या तीन यावत् क्वचित् दश धर्मास्तिकाय प्रदेश कहे हुवे हैं. ऐसे ही अधर्मास्तिकाय व आकाशास्तिकाय के जानना, शेष तीन के अनंत प्रदेश कहना. संख्यात पुद्गलास्तिकाय में काचित् एक, क्वचित् दो यावत् क्वचित् दश क्वचित् संख्यात कहना. असंख्यात में क्वचित् असंख्यात तक कहना. असंख्यात जैसे अनंत पुद्गलास्तिकाय प्रदेश का कहना ॥ २५ ॥ अहो भगवन् ! एक अद्धा समय में कितने धर्मास्तिकाय
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .