SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1878
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - १८४८ अनुवादक-यालब्राह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी एकोवि,सेसं जहा धम्मस्थिकायस्स॥२२॥जत्थण भंते! एगे आगासत्थिकायपदेसे ओगाढे. तत्थ केवइया धम्मत्थिकायपदेसा ओगाढा ? सिय ओगाढा सिय णो ओगाढा, जब ओगाढा एक्को, एवं अहम्मास्थिकाय पदेसावि, ॥ केवइया आगासत्थिकाय ? णत्थि एकोवि ॥ केवइया जीवत्थि ? सिय ओगाढा सिय णो ओगाढा, जइ ओगाढा अणंता ॥ एवं जाव अद्धा समया ॥ २३ ॥ अस्थणं भंते ! एगे जीवत्यिकाय पदेसे 'तत्थ केवइया धम्मत्यिकाय ? एको, एवं अहम्मत्थिकाय पदेसावि ॥ एवं आगासत्थिनहीं है. शेष र धानकाय ने कहना.॥२२॥अहो भगवन्! जहाँ आकाशास्तिकायाके प्रदेश अवगाहकर रहे हैं. वहां कितने धर्मतिकाया के प्रदेश अवगाहकर रहे हैं? अहो गौतम! क्वचित् अवगाहकर रहे हैं और क्वचित् अवगाहकर ही रहे हैं जब अरगाहकर रहे एंव हैं तब एक प्रदेश अवमाहकर रहा हुवाहै. ऐसेही अधर्मास्तिकायाका जानना आकाशास्तिकाया का एक भी प्रदेश अवगाइ कर नहीं रहा हुवा है. जीवास्तिकाया के काचित् अवगाहकर रहे हैं कवित् नहीं जा हैं तब अनंत अवगाहकर रहे हैं ऐसे ही अद्धा समय तक जानना. ॥ २३ ॥ अहो भगान् ! जहां एक जीवास्तिकाय का प्रदेश है वहां कितने धर्मास्तिकाया के र प्रदेश : अहो मौतम ! एक प्रदेश है, ऐसे ही अधर्मास्तिकाय, आशान्तिकाय के भी एक २ प्रदेश है मासक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्यालामसादजी
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy