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भावार्थ
प्पएसेहिं ॥ केवइएहिं जीवत्थिकाय. अगंतहि, एवं जाव अडासमएहि ॥ १८ ॥ ३. धम्मत्थिकाएणं भंते ! केनइएहिं धम्मत्थिकाय पदसहि पुढे ? णत्थि एक्केणवि ॥ केवइएहिं : है. अहम्मत्थिकाय पदे हिं? असंखजहि, केवइएहिं आगगसत्थिकायपदसहिं ? असंखेल्नेहिं ॥
केवइएहिं जीवत्थिकायपदेसहिं ? अणतेहिं ॥ केवइएहिं पोग्गलत्थिकाय• अणतेहिं ॥ परमाणु द्रव्य एक धर्मास्तिकाय प्रदेश को अवगाह कर रहा है वह और अन्य छ दिशि के छ प्रदेश यों सात को स्पर्शा है. ऐसे ही अधर्मास्तिकाय व आकाशास्तिकाय का जानना. जीवास्तिकाय के अनंत प्रदेश स्पर्शे, क्यों की एक प्रदेश में अनंत जीव कहें हैं. पुद्गलास्तिकाय के अनंन प्रदेश से स्पर्श हुवा है व अद्धासमय अनंत स्पर्शा हुआ है. ॥ १८ ॥ अहो भगान् ! संपूर्ण धर्मास्तिकाय धर्मास्तिकाय के कितने है। प्रदेश मे स्पर्श हुई है ? अहो गोनम ! एक भी प्रदेश को नहीं पी हुइ है क्यों की यहां संपूर्ण धर्वास्तिकाय ग्रहण कर प्रश्न किया है. इस से बाहिर किंचिन्मात्र धर्मास्तिकाय : नहीं है. अहो भगवन् ! कितने अधर्मास्तिकाय के प्रदेश से स्पर्श हुई है ? अहो गौतम ! असंख्यात
अधर्मास्तिकाय के प्रदेश मे स्पर्शी हुई है. क्यों की जिननी लोकव्यापक धर्मास्तिकाय है उतनी ही लोक व्या13पक अधस्तकाया है और उनके प्रदेश अख्यात को हैं आकाशास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश
स्पर्धी हुई क्यों की लोक व्यापक प्राकाशास्तिकाय असंख्यात प्रदेशात्मक है. जीवास्तिकाय के अनंत प्रदेशा
पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) मत्र
तेरहवा शतकका चौथा उद्देशा +482