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मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि
भावार्य
अणंतहि ॥ १६ ॥ असंखेजा भंते ! पोग्गलत्थिकायप्पदेसा केवइएहिं धम्मत्थिकाय " पदेसेहिं ? जहण्णपदे तेणेव असंखेनएणं दगुणेणं दुरूवाहिएणं, उक्कोसपदे तेणेर
असंखेज्जएणं, पंचगुणएणं दुरूवाहिएणं सेसं जहा संखेज्जाणं जाव णियमं अणंतहिं ।। १८४४ अणंता भंते ! पोग्गलत्यिकायप्पदेसा केवइएहिं धम्मत्थिकाय एवं जहा असंखेजा तहा अणंता, गिरवसेसं ॥ १७ ॥ एगे भंते ! अहासमए केवइएहिं धम्मस्थिकायप्प. “देसेहिं पुटुं ? सत्तहिं, कंवइएहिं अहम्मत्थि. एवं चेत्र ॥ एवं आगासत्थिकायपद्लास्तिकाय के अनंत और काल क्वचित् स्पर्शता है और काचित् नहीं स्पर्शता है. जब स्पर्शता है । तब अनंत स्पर्शता है. ॥ १६ ॥ अहो भगवन् ! असंख्यात पुद्गलास्तिकाय प्रदेश कितने धर्मास्तिकाया प्रदेश से स्पर्श हुवे ? अहोंगौतमा जघन्य पद से असंख्यात को दोगु करके दो अधिक करे उतने और उत्कृष्ट पद अख्यिात को पांच गुने करके दो अधिक करे उतने शेष सब संख्यात जैसे कहना. जैसे असंख्यातका कहा
ही अनंत का जानना ॥ १७ ॥ अहो भगवन् ! एक अद्धा १ समय कितने धर्मास्तिकाया के प्रदेशों मि सी है ? अहो गौतम ! एक अदा समय सात धर्मास्तिकाय प्रदेश को स्पर्शा है. काल मात्र अढाउद्वीप में होने से धर्मास्तिकाया की कोन में होता है इस से जघन्यः पद यहां नहीं है. अदा समय विशिष्ट
१ पहां वर्तमान समय विशिष्ट क्षेत्रवः परमाणु का अद्धासमय ग्रहण करना..
.प्रकाशक-संजाबहादुर लालामुखदेवमहायजी मानापमादजी.
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