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सूत्र
भावार्थ
पंचांग विवाह णत्ति ( भगवती ) मुत्र +
सपदे बारसहिं । एवं अहम्मत्थिकायप्पदेसेहिंचि ॥ केवइएहिं आगासत्थिकाय पुच्छा ? गोयमा ! बारसहिं सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स ॥ १४ ॥ तिष्णि भंते ! पांग्गलस्थि कापसा के एहिं धम्मत्थिकापसेहिं पुटु ? गोयमा ! जहणदे अ उत्कृष्ट पद में बारह का विवरण जिंक दो देशों को
कर रहे हैं वे नीच के दो, उपर के दो पूर्व पश्चिम दिशी के दो २ दक्षिण बाजु में एक और उत्तर कज में एक यो बारह वर्मास्तिकाय के प्रदेश स्पर्श हुवे हैं ऐसे ही अधर्मास्तिकाय का जानना आकाशास्तिकाय के बारह प्रदेश स्पर्धे हुये हैं शेष सत्र धर्मास्तिकाय जैसे कहना || १४ || अ भगवन ! तीन पुगलास्तिकाय प्रदेश को कितने धर्मास्तिकाय प्रदेश स्पर्शे हुवे हैं -? अहो गौतम ! जघन्य पद से तीन पुद्गलास्तिकाय प्रदेश को आठ धर्मास्तिकाय प्रदेश नीचे व उपर जो प्रदेश हैं उन को भी दो पुद्गल का स्पर्शन होने से भेद से दो प्रदेश साथ स्पर्शे वैसे ही दोनों बाजु एक र अणु को एक. २ यों दो प्रदेश स्पशैं. यों जघन्य पद में छ धर्मास्तिकाय प्रदेश द्वयणुक स्कंध को स्पर्शे. यदि नयमत स्त्रीकृत न किया तो द्वयक को चार प्रदेश स्पशैं. अब वृत्तिकार का कथन ऐसा है कि द्विप्रदेशिक स्कंध सो दो परमाणुओं जानना. उस में इधर रहा हुवा परमाणु इधर के प्रदेश की साथ स्पर्शे और उधर रहा हुवा परमाणु उधर के 'प्रदेश से स्पर्शे इस तरह दोनों तरफ के दो प्रदेश, औजिन दो प्रदेश में दो परमाणुओं की स्थापना की उन की आगे के दो प्रदेश स्पों यों चार और दो प्रदेश अवगाह कर रहे हैं सो यो छ प्रदेश हुए.
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तेरा सनकका चौथा उद्देशा
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