________________
42.अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
कायप्पदेसे केइएहिं धम्माथिकाय पुच्छा ! जहण्णपदे चउहि. उक्कासपदे सनहिं । एवं अधम्मत्थि कायप्पदेगहिविा केवइएहिं आगासत्यिकाय पुच्छा?सत्तहिं ।केवइएहिं जीवत्थि सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स. ॥ १२ ॥ एगे. भंते ! पोग्गलत्थिकायप्पदेसे केवइएहिँ धम्मत्थिकायप्पदेसेहिं ; एवं जहेब जीवस्थिकायस्स ॥ १३ ॥ दो भंते ! पोग्गलत्थिर
कायप्पदेसा केवइएहिं धम्मत्थिकायप्पदेसेहिं पुट्ठा ? गोयमा ! जहण्णपदे छहिं उक्को.. अनंत प्रदेशों से स्पर्शा हुवा है. ऐसे ही पुद्गलास्तिकाया का जानना. और बने ही कालका भी कथन. कहना।। २.१॥अहो भगवन् ! एक जीवास्तिकायप्रदेश को कितने धर्मास्तिकाय प्रदेश स्पर्शकर रहे हैं? अहो गौतम! जयन्य चार उत्कृष्ट सात धर्मास्तिकाय प्रदेश, अधर्मास्तिकाय के भी जयन्य चार उत्कृष्ट सात प्रदेश स्पर्श कर रहे हैं. आकाशास्तिकाय के सात प्रदेश रहे हैं और शेष सब धर्मास्तिकाय जैसे कहना. ॥ १२॥ अहो भगान् ! एक पुद्रलास्तिकाय प्रदेश कितने धर्मास्तिकाय प्रदेश से स्पर्श कर रहा है? अहो गौतम ! जैसे जीवास्तिकाया का कहा वैसे ही यहां कहना. ॥१३॥ अहो भगवन् ! दो पदलास्तिकाय प्रदेश किनने धर्मास्तिकाय प्रदेश मे स्पो हुवे हैं ? अटो गौतम ! जघन्य छ उत्कृष्ट बारह प्रदेश स्पर्श हुवे हैं. +
+ यहांपर चूर्णिकार ऐसा कहते है कि लोकान्त में जो द्विप्रदेशिक स्कंध एक प्रदेश अवगाह कर रहा हुवा हे उस १ है एक अवगहित प्रदेश को भी प्रतिद्रव्य अवगाहि प्रदेश ऐसा नयमत का आश्रय ग्रहण कर के भिन्नपना से दो परों, और है
• प्रकाशक राजाबहादुर लामा सुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *