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पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
सिय पुढे सिय जो पुढे, जइ पुढे जहण्णपदे एक्कणवा दोहिंवा तिहिंवा, उक्कोसपद सत्तहिं ॥ है एवं अहम्मत्थिकायप्पएसेहिंवि ॥ केवइएहिं आगासत्थिप्पएसेहिं पुढे? गोयमा ! छहिं ॥के
वइएहिं जीवत्थि कायप्पदेसेहिं पु?? गोयमा ! सियपुढे सिय णो पुढे, जइ पुढे णियमं अणं
तेहिं एवं पोग्गलत्थि कायप्पदेसेहिंवि ॥ अद्धासमएहि ॥ ११॥ एगे भंते ! जीवस्थिव उपर का और उत्कृष्ट पद से एक आकाशास्तिकाय के प्रदेशको धर्मास्तिकाया के सात प्रदेशोंने स्पर्श किया है. लोकान्त की कौन में रहा हुवा आकाश प्रदेश धर्मास्तिकाया के प्रदेश को अवगाहकर रहाहुवा है और इस की एक उपर, एक अधो व एक बाजु पर का प्रदेश यों चार, और दोनों बाजु दो, उपर, नीचे के दो और एक धर्मास्तिकाया प्रदेश जिस में रहा है सो यो पांच, व उपर, नीचे व तीनों दिशा के 4 तीन यो छ और उपर नीचे व चारों दिशा के चार प्रदेश स्पर्श कर रहे हैं. इस तरह एक आकाशास्तिकाय प्रदेश धर्मास्तिकाया के सात प्रदेशों से स्पर्श कर रहा हुवा है. जैसे आकाशास्तिकाया की साथ धर्मास्तिकाया का कहा वैसे ही अधर्मास्तिकाया का जानना. अहो भगवन् ! कितने आकाशास्तिकाय प्रदेश से स्पर्श हुवा है ? अहो गौतम ! छ आकाश प्रदेश से स्पर्शा हुवा है, अहो भगवन् ! कितने , जीवास्तिकाय प्रदेश से स्पर्शा हुवा है ? अहो गौतम ! क्वचित् स्पर्श हुवा है और क्वचित् नहीं 'स्पर्शा हुवा है क्यों कि लोकाकाश में जीव हैं और अलोकाका में जीवनी है. बाद स्पर्श हुवा है तो निश्चय ..
28 तेरहवा शतक का चौथा उद्देशा
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