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श्री अमोलंक ऋषिजी+
12. भंते ! अहम्मतिथ कायप्पएसे केवइएहिं धम्मत्थिकायप्पएसेहिं पुढे ? गोयमा ! है जहण्णपदे चंउहि उक्कोसपदे सत्तहिं ॥ केवइएहिं अहम्मत्थिकायप्पएसेहिं पुढे ?
गोयमा ! जहण्णपदे तिहिं उक्कोसपदे छहिं, सेसं जहा धम्मत्यिकायस्स ॥ १॥
एगे भंते ! आगासत्थि कायप्पएसे केवइएहिं धम्मत्थिकायप्पएसेहिं पुढे ? गोय! भावार्थ मास्तिकाय प्रदेश को कितने धर्मास्तिकाय प्रदेश स्पर्श हुवे हैं ? अहो गौतम ! जघन्य चार उत्कृष्ट सात.
अहो भगवन् ! कितने अधर्मास्तिकाया के प्रदेश स्पर्श हुवे है ? अहो गौतम ! जघन्य तीन उत्कृष्ट छ शेष सब धर्मास्तिकाया जैसे कहना ॥ १० ॥ अहो भगवन् ! एक आकाशास्तिकाय प्रदेश कितने धर्मा. स्तिकाया के प्रदेश से स्पर्शा हुवा है ? अहो गौतम ! आकाशास्तिकाया को धस्तिकाया क्वचित् स्पर्शी हुई है और काचित् नहीं स्पी हुई है क्यों की आकाशास्तिकाया के दो भेद कहे हैं लोकाकाश व अलोकाकाश. लोकाकाश में धर्मास्तिकाया है और अलोकाकाश में धर्मास्तिकाया नहीं है इस से क्यचित् स्पर्श हुई है और काचित् स्पर्श हुई नहीं है. जब धर्मास्तिकाया स्पर्शी हुई तब जघन्य एक प्रदेश से स्पर्शी हे लोकान्त में रहा हुवा आकाश प्रदेश पर धर्मास्तिकाया का प्रदेशवत्. क्वचित् दो धर्मास्तिकाया प्रदेश, वक्रगति आकाश प्रदेशको दो धर्मास्तिकाया के प्रदेश स्पर्श हुई हैं और तीन प्रदेश का भी स्पर्श होता है वह अलोकाकाश बंधक प्रदेश के आगे का,. नीचे का
वाक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
4.8 अनुवादक-बालब्रह्म