________________
१८३७
भावार्थ
A8+ पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती ) सूत्र 488+
2 पुढे ? गोयमा ! सत्तहिं ॥ केवइएहिं जीवस्थिकायप्पएसेहिं पुढे ? गोयमा ! अणं
। तेहिं ॥ केवइएहिं पोग्गलत्थिकायप्पएसेहिं पुढे ? गोयमा ! अणंतेहिं ॥ केवइएहिं १ अद्धासमएहिं पुढे ? सिय पुढे सिय जो पुढे, जइ पुढे णियमं अर्णतेहिं ॥ ९॥ एगे हुवा है। अहो गौतम ! सात प्रदेश से स्पर्शा हुवा है. क्यों कि लोकात में भी अलोकाकाश विद्यमान है.. अहो भगवन् । एक धर्मास्तिकाय प्रदेश से कितने जीवास्तिकाय प्रदेश स्पर्धे हुवे हैं ? अहो गौतम ! अनंत जीवास्तिकाय प्रदेश स्पर्श हुवे हैं, क्योंकि एक धर्मास्तिकाय प्रदेश के तीनों तरफ अनंन जीव के प्रदेश रहे हुवे हैं. अहो भगान् ! एक धर्मास्तिकाय प्रदेश को कितने पुद्गलास्तिकाय प्रदेश स्पर्श हुवे हैं ! अहो । गौतम ! अनंत पुदूलास्तिकाय प्रदेश स्पर्श हुये हैं जीवास्तिकाय प्रदेशवत्, अहो भगवन् : एक धर्माहस्तिकाय को कितना अद्धा (काल) स्पर्शा हुवा है ? अहो : गौतम ! धर्मास्तिकाय प्रदेश को काल क्वचित् स्पर्शा हुवा है और क्वचित् स्पर्शा हुआ नहीं है क्यों कि काल. मात्र अढाइ द्वीप में है इस से बढाइ द्वीप में स्पर्श कर रहा है और अढाइ द्वीप सिवाय अन्यत्र काल स्पर्श कर नहीं रहा है. जो पर्श कर रहा है वह अनंत स्पर्श कर रहा है. क्यों कि तीनों काल के समय अनंत हैं। वैसे ही वर्तमान समय अनंत दिग्य का मालिंगन होने से अनंत द्रव्य के अनंत समय को. स्पर्शता है ॥ ९ ॥ अहो भगवन् : एक अप
तेरहवाशवर्क का