________________
श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रााशक-राजबहादुर लाला मुखदेवसहायजी
भावार्थ
मणजोग-वइजोग कायजोग,आणा पाणूणंच महणं पवत्तंति,गहण लक्खणेणं 'पोग्गलत्थि काए ॥ ८ ॥ एगें भंते ! धम्मत्थिकायप्पएसे केवइएहिं धम्मत्थिकाथप्पएसेहिं पुटे ? गोयमा ! जहण्णपदे तिहिं, उक्कोसपदे छहिं । केवइएहिं अहम्मत्थिकायप्पएसेहिं पु??
गोयमा ! जहण्णपदे चउहिं उक्कोसपदे सत्तहिं ॥ केवइएहिं आगासत्थिकायप्पएसेहिं लेना होता है. क्यों की पुद्गलास्तिकाया का ग्रहण लक्षण है. ॥ ८ ॥ अव अस्तिकाय प्रदेश स्पर्शन द्वार, कहते हैं. अहो भगवन् ! एक धर्मास्तिकाय प्रदेश कितने धर्मास्तिकाया के प्रदेश से स्पर्शा हुवा है ? अहोस गौतम ! एक धर्मास्तिकाय प्रदेश जघन्य तीन धर्मास्तिकाय प्रदेशको स्पर्शाहुवा है. लोक के अंत में निकुटरूप जहां एकधर्मास्तिकायादि प्रवेशन बहुत अल्प है अन्य प्रदेश साथ स्पर्शना होवे. भूपि आसन्न कमरा के खुने । का एक प्रदेश को दो बाजु दो और एक नीचेयों तीनप्रदेश होवे वैसेही धर्मास्तिकाया के प्रदेश को जघन्य पना से धर्मास्तिकाया के तीन प्रदेशो स्पर्श हुवे रहे हैं. और उत्कृष्ट पद से छ प्रदेश स्पर्क हुवे रहे हैं किसी एकप्रदेश के उपर, नीचे व चारों दिशा के चार योंछ प्रदेश सर्शकर रहे हुवे हैं. अहो भगवन्! एक धर्मास्ति
काया का प्रदेश अधर्वास्तिकाया के कितने प्रदेश से सीहुवा है ? अहो गौतम ! जघन्यपद से चार से स्पर्श में उत्कृष्ट पदसे सातसे स्पर्श. पहिले जो तीन व छ कहे हैं उसमें जो धर्मास्तिकायाका प्रदेश स्पर्शने का वही अधर्मास्ति
काया के स्थान होने से अधिकलियागया है अहो भगवन्!एकधर्मास्तिकाय प्रदेशकितने आकाशास्तिकाय प्रदेश से
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि