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सूत्र
भावार्थ
+ पंचमांग वहाव पण्णति ( भगवती ) सूत्र
पुण्णे सयंबि माएजा, कोडिसएणवि पुण्णे कोडिसहस्संपि माज्जा, अवगाहणा लक्खणेणं आगासत्थिकाए । जीवत्थिकारणं भंते ! जीवाणं किं पवत्तइ ? गोयमा ! जीवत्थि काएणं जीवे अनंताणं आभिणिबोहियणाण पज्जवाणं, अनंताणं सुअणाण पज्जवाणं, जहा बितिसए अस्थिकाय उद्देस जाव उवओगं गच्छति, उवओग लक्खणेणं जी || पोग्गलथिका पुच्छा ? गोयमा ! पोग्गलत्थिकाएणं, जीवाणं ओरालिय उवि आहारग-तया कम्मा, सोइंदिय- चक्खिदिय- घाणिदिय जिभिदिय- फासिंदिय, दीपक का प्रकाश भी उसी कमरे में आ जाता है वैसे ही एक आकाश प्रदेश में परमाणुओं का समावेश होता है क्योंकि आकाशास्तिकाया का लक्षण अवगाहना है. अहो भगवन् ! जीवास्तिकाया से जीवों को क्या प्रवर्तन होता है ? अहो गौतम ! जीवास्तिकाया से अनंत अभिनिवोधिक ज्ञान के पर्यव, अनंत श्रुतज्ञान के पर्यत्र वगैरह सब कथन दूसरे शतक के अस्तिकाय उद्देशे में से जानना. यावत् उपयोग लक्षण वाला जीव है. अहो भगवन् ? पुद्गलास्तिकाया से जीवों को क्या प्रवर्तन है ? अहो गौतम ! पुद्गलास्तिकाया से नीवों को उदारिक, वैक्रेय, आहारिक, तेजस् व कार्याण शरीर, श्रोते(न्द्रिय चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय मनयोग, वचनयोग, कायायोग और श्वासोश्वास का
444 तेरहवा शतक का चौथा उद्देशा
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