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शब्दार्थसा वह रो रोहा ॥ १२॥ पु० पाहिले भं भगवन् लो लोकान्त प० पीछे अ० अलोकान्त ५०
पहिले अ० अलोकान्त प० पीछे लो० लोकान्त रो. रोहा लो. लोकान्त अ. अलोकान्त जा. यावत् ९७० अननुक्रम से ।।१३।। पु० पहिला भं. भगवन् लो. लोकान्त प० पीछे स. सातवा उ आकाशान्तर
पु. पृच्छा रो० रोहा लो० लोकान्त सः सातवा उ आकाशान्तर पु० पहिला जा. यावत् अ अननुक्रम से सा. वह रो० रोहा ए. ऐसे लो० लोकान्त स. सातवा त० तनुवात घ. घनवात घ. घनोदधि मा सासया भावा, अणाणुपुबीए सा रोहा ॥ १२ ॥ पुचि भंते ! लोयंते, पच्छा अलो
विअलोयंते पच्छा लोयंते ?, रोहा ! लोयंतेय अलोयंतेय जाव अणाणवीए सा रोहा ॥ १३ ॥ पवि भंते ? लोयंते पच्छा सत्तमे उवासंतरे पुच्छा,
रोहा ! लोयंतेय सत्तमेय उवासंतरे पब्धि पेते जाव अणाणुपुबीए सा रोहा । एवं लो। भावार्थ
रहित है ॥ १२ ॥ पुनः रोहक पृच्छा करते हैं कि अहो भगवन् ! पहिले लोक का अंत और पीछे है । E अलोक का अंत अथवा पहिले अलोक का अंत और पीछे लोक का अंत ! अहो रोहा! इन दोनों के
अंत में पहिले पीछे कोई नहीं है दोनों बराबर शाषन यावत् अनुक्रम रहित हैं ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ।
पहले लोकान्त और पीछे सातवी पृथ्वी का आकाशान्तर अथवा पहिले सातवी पृथ्वी का आ ॐकाशान्तर और पीछे लोकान्त ? अहो रोहा : दोनों पाहले भी हैं और दोनों पीछे भी हैं यावत् अनु-१ ।
2981- पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
<38- पहिला शतकका छटा उद्देशा 988Tods