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शब्दार्थ जैसे लो० लोक अ० अलोक त० तैसे जी० जीव अ० अजीव ए० ऐसे भ० भव सिद्धिया जीव अ० अभव ।
सिद्धिया जीव सि सिद्धि अ०असिद्धि सिसिद्ध असिद्ध॥११॥पु०पहिला भं भगवन् अं अंडा प०पीछे कु०मुरगी पु० पहिली कु. मुरगी ५० पीछे अं० अंडा रो०रोहा से वह अ० अंडा क० कहां से भ० भग-1 वन कु. मुरगी से सा. वह कु. मुरगी क० कहां से भं• भगवन् अं० अंडे से ए. ऐसे रो० रोहा से०१ वह अं० अंडा सा० वह कु• मुरगी पु० पहिले प० पीछे भी दु० दोनों सा शाश्वत भाव अ० अननुक्रम से
अलोएय, तहेव जीवाय अजीवाय, । एवं भवसिद्धियाय, अभवसिद्धियाय । सिद्धी असिद्धी । सिद्धा असिद्धा ॥ ११ ॥ पुट्विं भंते ! अंडए पच्छाकुक्कुडी, पुचि कुक्कुडी पच्छा अंडए? रोहा! सेणं अंडए कओ? भयवं कुक्कुडीओ, साणं कुक्कुडी कओ?
भंते ! अंडयाओ ? एवामेव रोहा ! सेयझंडए सायकुक्कुडी, पुद्धिपते पच्छापेते दुवे जीव अजीव, भव सिद्धिया अभव सिद्धिया, सिद्धि अभिद्धि, सिद्ध व असिद्ध का जानना ॥ ११ ॥ अब ३३ उक्त प्रश्नों की सिद्धि के लिये पुनः रोहक अनगार प्रश्न पुछते हैं. अहो भगवन ! पहिले अण्डा व पीछे
मुर्गी या पहिले मुर्गी व पीछे अण्डा ? भगवन्तने पूछा कि अहो रोहा ! अण्डा कहां से हुवा ? भगवन ! * अण्डा मुर्गा से हुवा. रोहा ! मुर्गी किस से हुई ? भगवन् ? मुर्गी अण्डे से हुई. इसी तरह अहो रोहा !
वही अण्डा, वही मुर्गी पहिले भी थे, और पीछे भी वे दोनों हैं. वे दोनों शाश्वत व अनुक्रम
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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