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शब्दार्थ |
सूत्र
भावाथ
48803 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
तप से अ० आत्मा को भा० भावता वि० विचरते हैं ॥ ९ ॥ त तब से वह रो० रोहा अ० अनगार {जा० उत्पन्न श्रद्धा जा० यात्रत् प० पूजते ए० ऐसा व० बोले पु० पहिला भ० भगवन् लो० लोक प० पीछे अ० अलोक पु० पहिला अ० अलोक प० पीछे लो० लोक रो० रोहा लो० लोक अ० अलोक {५० पहिले प० पीछे भी दो दोनों सा० शाश्वत भाव अ० अननुक्रम से सा० वह रो० रोहा ॥१०॥ पु० पहिला भं० भगवन् जी० जीव प० पीछे अ० अजीव पु० पहिला अ० अजीव प० पीछे जी० जीव ज० भावेमाणे विहरइ ॥ ९ ॥ एणं से रोहे अणगारे जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे, एवं वयासी - पुव्विते ! लोए पच्छा अलोए, पुव्विअलोए पच्छालोए ? रोहा ! लोएय अलोएय पुव्विपेते, पच्छापेते दोवेए सासया भावा, अणाणुपुवीए सा रोहा ॥ १० ॥ पुवि भंते ! जीवा पच्छा अजीवा, पुत्रि अजीवा पच्छा जीवा ? जहेव लोएय संयम व तप से आत्मा को भावते हुवे विचरते थे ॥ ९ ॥ उस समय संशय युक्त रोहक नामक अन {गार निर्णय करने के लिये श्री भगवन्त की समीप आये और तीन वार प्रदक्षिणा करके पूछने लगे कि अहो भगवन् ! लोक पाहिले व अलोक पीछे अथवा अलाक पहिले व लोक पीछे ? अहो रोहा ! लोक {व अलोक दोनों पहिले भी हैं और पीछे भी हैं क्यों कि इन दोनों के शाश्वते भाव हैं इस में पाहिले पीछे का क्रम नहीं है क्यों की दोनों समान है || १० || जैसे लोक अलोक का प्रश्नोत्तर कहा वैसे ही
१९६०१ पहिला शतक का छट्टा उद्देशा
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