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________________ शब्दार्थ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी उस काल ते. उस समय में स० श्रमण भ० भगवान् म० महावीर के अं० अंतेवासी रो० रोहा णा• * नाम के अ० अनगार प० प्रकृति का भ० भद्रिक प० प्रकृति का म० कोमल प० प्रकृति का वि० विनित ५० प्रकृति का उ० उपशांत प० प्रकृति प० थोडा को क्रोध मा० मान मा० माया लो० लोभ मि. मुद् म० मार्दव सं० युक्त अ० अलीन भ० भद्रिक वि. विनित मा श्रपण भ० भगवान भ. महावीर की अ० नजदीक उ० ऊर्ध्व जा० जानु अ नीचा सि.शिर से झा० ध्यान में रहे हवे सं० संयम से त० है विहरइ ॥ ८ ॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी रोहे णामं अणगारे, पगइभद्दए, पगइमउए, पगइविणीए, पगइउवसंते, पगइपयणु कोह माण माया लोभे मिउमद्दवसंपन्न अलीणे भदए विणीए समणस्स भगवओ. महावीरस्स अदूरसामंते उर्दू जाणु अहोसिरे झाणकाट्ठोवगएं, संजमेणं तवसाअप्पाणं पर गौतमने स्वामीने जो प्रश्न किये हैं उन में कर्म प्ररूपणा की है वह कर्म प्रवाह से शाश्वते हैं इस से पर गात शाश्वते जो लोकादिक के भाव हैं उम संबंध में रोहक नामक अणगार प्रश्न करते हैं. उम काल उस समय में श्री महावीर स्वामी के अन्तेवानी रोहक नामक अणगार थे. वे भद्रिक, विनीत, कोमल व उपशान्त प्रकृति-स्वभाववाले थे. उन के क्रोध, मान, माया व लोभ पतल होगये थे. मद्ता संपन्न थे, गुरुदत्त व्रत्ताराधक थे. ऐसे अनगार श्री श्रमण भगवन्तं की पास नीचा मस्तक से ध्यान करते हुवे व * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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