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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र*382
अनुक्रम से क. की व.कहना ज. जैसे ने नारकीत तैसे एपकेन्द्रिय व० वर्जकर भा० कहना, जा. यावत् वे० वैमानिक ए. एकेन्द्रिय ज. जैसे जी० जीव त० तैसे भा० कहना ॥ ७॥ ज० जैसे पाप्राणातिपात में त-तैसे मु०मृपावादमें अ० अदत्तादानमें मे मैथ में प.परिग्रह में कोक्रोधमें जा. यावत् मि० मिथ्या दर्शन शल्य ए. ऐसे ए० ये अ० अठारह च० चौवीम दं० दंडक भा० कहना स० वह ए. ऐसे भ० भगवन् भ० भगवान गो० गौतम म०, श्रमण जा० यावत् वि० विचरते हैं ॥ ८॥ ते.
णो अणाणुपुब्धि कडाति वत्तव्बंसिया । जहा नेरइया तहा एगिदियबज्जा भाणियव्वा जाव वेमाणिया ॥ एगिदिया जहा जीवा तहा भाणियन्वा ॥ ७ ॥ जहापाणाइवाए तहामुमावाए, तहाअदिन्न, मेहुणे, परिग्गह, कोहे जाव मिच्छादसणसल्ले ॥ एवं
एएणं अट्ठारस चउव्वीसं दंडगा भाणियव्वा ॥ सर्वभंते २ भगवं गोयमे समणं जाव इन्द्रिय वर्ज कर अन्य सब दंडक को कहना और एकेन्द्रिय को समुच्चय जीव जैसे कहना क्यों की उन को लोक के अंत तक जाने से व्याघात आश्रित तीन, चार, पांच दिशी को स्पर्श कर क्रिया लगती है।।७ जैसे प्राणातिपातिकी क्रिया कही वैम ही मपावाद, अदत्तादान, मैथुन परिग्रह क्रोध वगैरह अठारह क्रिया चौवीस दंडक पर उतारना. अहो भगान ! जै। आपने प्रतिपादन किया वह वैसा ही है अन्यथा नहीं है. ऐसा गौतम स्वामी कहकर तप, संयम से अपनी आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे ॥८॥ यहां
** *पहिला शतक का छठा उद्देशा
भाव