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शब्दार्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
[जा० यावत् क० की जा० यावत् क० करते हैं जा० यावत् क० करेंगे स० सब सा० वह आ० अनुक्रम {से क० की णो नहीं अ० अननुक्रम से क० की व० कहना ॥ ६ ॥ अ० है ० भगवन् ने० नारकी पा० प्राणातिपातिकी क० करते हैं हैं ० हां अ० है सा० वह मं० भगवन् किं० क्या पु० स्पर्शी क० करते
अ० नहीं स्पर्शी क० करते हैं जा० यावत् निः निश्चय छ० छदिशा में क० करे सा० वह मं० भगवन् किं० क्या क० कीहुइ क० करते हैं अ नहीं कीहुइ क० करते हैं तं० तैसे जा० यावत् नो० नहीं अ० जिस्सइ, सव्वा सा आणुपुव्विकडा, नो अणाणुपुत्रिकडा त्तिवत्तव्वंसिया ॥ ६ ॥ अस्थि भंते! णेरइयाणं पाणाइत्राय किरिया कज्जइ । हंता अत्थि । सामंते ! किंपुट्ठा कज्जइ अटु' कज्जइ जाव नियमा छद्दिसि कज्जइ ॥ साभंते । किं कडाकजइ अकड । कज्जइ? तंचेत्रजाव
{नहीं की हुई क्रिया नहीं लगती है. जो अतीत काल में की, वर्तमान में करते हैं व आगामिक में करेंगे वह सब अनुक्रम से कराइहुइ हैं परंतु अनुक्रम बिना नहीं कराई हुई है ॥ ६ ॥ प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं ? हां गौतम ! वे प्राणातिपानिकी क्रिया
अहो भगवन् ! क्या नारकी
निश्चय से छ दिशिको स्पर्श
[कर करते हैं. अहो भगवन् ! क्या वे की हुइ क्रिया करते हैं अथवा बिना की हुई क्रिया करते हैं ? अहो गौतम ! वे की हुई क्रिया करते हैं यावत् अनुक्रम से नहीं कराइ हुइ क्रिया नहीं करते हैं वगैरह सब अधिकार पूर्ववत जानना जैसे नारकी को प्राणातिपाति की क्रिया को स्वरूप कहा वैसे ही एके
* प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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