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________________ * शब्दार्थ दोनोंन के कीडः क कमाना गोनम अ. बनाने का कोहः कः करता है, नोः नही दरने का कीड़ा का करना णा नही उ भयने कारकीह क: करने हैं माल वह भ भगवन कि क्या आ० अनुः मेक कीटका करना है अ. अनवकम मेक कीहा कर करते हैं गो " गौनग आ. अनुक्र कीटना करते हैं जो न अ अनमय में कार कोई काकी है विवाह पण्णनि ( भगवती १ तदुभयकडा कद ? गोयमा : अत्तकडा कजइ, णो परकडा कज्जइ, णो तदुभयकडा ट कजइ ॥ सा भने : किं आणविकडा कजाइ, अणाणुपुब्बिकडा कजइ । गोयमा : आणविका कजद, णो अणाणपुब्बिकडा का ॥ जायकर, नायब चाइ, जायक. पाहेला शतकका छठा उद्दशा भावाशे है या विना की हर लगती है ! अहो गौतम ! की इ क्रिया माती ...का हुइ नहीं बगती है. अहो भगवन ! यदि की हुइ क्रिया लगती है तो क्या स्वतःने को ब्रिया लगती है अन्य की हुइ क्रिया लगती है, या दोहोंने की हुइ क्रथा लगी हैं ओ गौतमः स भी हुइ क्रिया लगती है। परंतु अन्यने या उभयने की हुई क्रिया नहीं लगती है. अहो भगवन ! वह क्रिया अनुक्रमसे की हुइ.x * लगती है अर्थात् पहिले करना पीछे पाप लगता अथवा अनुक्रम में नहीं कराइ हुइ लगती है अर्थात् पहिले पाप लगना फीर क्रिया लगे! अहो गौतम : अनक्रम मे की हुई क्रिया लगती है परंतु अनुक्रम से।
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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