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अनवादक-वालब्रह्मवारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी 22
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला
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किं पवहा, कइ पएसादिया, कइ पएसविच्छिण्णा, कइ पएसिया किं पज्जवसिया, किं संठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! अग्गीयीणं दिसा रुयगादिया, रुयगप्पबहा, एगपदेसादिया, एगपदेसविच्छिण्णा, अणुत्तरा, लोगं पडुच्च असंखेज पदेसिया, अलोगं पडुच्च अणंत पदेसिया,लोगं पडुच्च सादिया सपज्जवसिया, अलोगं पडुच्च सादिया अपज्जवसिया छिण्णमुत्तावलि संठिया पण्णत्ता जमा जहा इंदा जरई जहा अग्गेयी एवं जहा
इंदा तहा दिसा चत्तारि । जहा अग्गेयी तहा चत्तारि विदिसाओ । विमलाणं भंते ! आदि ह, कहां से चली है, कितने प्रदेश आदि में है, कितने प्रदेश की विस्तारवाली है, कितने प्रदेशाला है, कहां उसका अंत है और कैसे संस्थान वाली है! अहो गौतम अग्नेयी दिशा की रुचक आदि है, रुवक से चली है, एक प्रदेश की आदि है, एक प्रदेश की विस्तीर्ण है, विदिशा की उत्तरोत्तर वाद्ध नहीं होती है, लोक आश्री असंख्यात प्रदेशात्मक अलोक आश्री अनंत प्रदेशात्मक, लोक आश्री* आदि अंतसाहित है अलोक आश्री आदि सहित अंतरहित है और छेद हो मुक्तावलि कार जले हैं. जैसे एन्द्री देशा का कहा वसे ही शेष मब दिशा का जानना. और जैसे अग्नेयी का कहा वैसे ही विदिशा का जानना. अहां भगवन् ! विमला दिशा की कहां आदि है वगैरह प्रश्न की अग्चयी जैसे पृच्छा करते हैं. यह गौतम ! विमला दिशा की झलक से आदि है, रुचक से विमला दिशा नीकली है, चार प्रदेश की
भावार्थ