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पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र १११
भावार्थ
एवं जहा दसमसए जाव णामधेजति ॥ ६ ॥ इंदाणं भंते ! दिसा किमादिया किं पवहा कइ पदेसादिया, कइपदेसुत्तरा कइपदेसिया किं पजवसिया, किं संठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! इंदाणं दिसा रुयगादिया रुयगप्पवहा दुपदेसिया, दुपदेसुत्तरा, लोगं पडच्च असंखेजपएसिया. अलोग पडच्च अणंत पएसिया ॥ लोगं पडच्च सादिया सपजवसिया, अलोगं पडुच्च सादिया अपजवसिया; लोगं पडुच्च मुरवसंठिया
अलोगं पडुच्च सगडद्धियसंठिया पण्णत्ता ॥ अग्गीयीणं भंते ! दिसा किमादिया, बनी हुई हैं, जिन के नाम पूर्व, पश्चिम, दक्षिण वगैरह जैसे दशवे शतक में कहा वैसे ही जानना ॥६॥ अब छठा दिशि विदिशि प्रवाह द्वार कहते हैं. अहो भगवन् ! इन्द्रा नामक दिशा की १ कहां आदि है, २ कहां से चली है, ३ आदि में कितने प्रदेश हैं, ४ कितने प्रदेशों की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है, ५ कितने प्रदशात्मक है, ६ कहां अंत है और ७ कहां रही हुई है ? अहो गौतम ! ऐन्द्री दिशा की रुचक सं | आदि है २ रुचक से चलती है दो प्रदेशों की आदि है, आगे दो प्रदेश की उत्तरोत्तर वृद्धि पाती है. लोक}ogo आश्री असंख्यात प्रदशात्मक है अलोक आश्री अनंत प्रदेशात्मक है, लोक आश्री आदि अंत सहित है। अलोक आश्री आदि सहित अंत रहित है. लोक आश्री मुरज नामक आभरण विशेष के आकारवाली है. और अलोक आश्री गाडी की धूरी के आकारवाली है. अहो भगवन् ! अग्नेयी दिशा की कहां से है।
48 तेरहरा शतकका चौथा उद्देशा
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