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एवं जहा जीवाभिगमे बितिए णेरइए उद्देसए ॥ ४ ॥ इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुडीए णिरय परिसामंतेसु जे पुढवीकाइया एवं जहा णेरइए उद्देसए जाव अहे सत्तमाए॥५॥कहिण्णं भंते ! लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते ? गोयमा! इमीसे रयणप्प. भाए पढवीए उवासंतरस्स असंखेजइ भागं उग्गहित्ता,एत्थण लोगस्स आयाममझे पण्णत्ते कहिणं भंते ! अहेलोगस्स्स आयाममञ्झे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउत्थीए पंकप्पभाए पुढीए उवासंतरस्स साइरेगं अहं उग्गहित्ता एत्थणं अहे लोगस्स आयाममझ पण्णत्ते कहिणं भंते ! उड्न लोगस्स आयाममझ पात्त ? गोयमा! उपि सणंकुमार माहिदाणं कप्पाणं बंभलोए कप रिढविमाणपत्थडे, एवणं उडलोगस्स आ
याममज्झ पण्णत्ते ॥ कहिण्णं भंते ! तिरियलोगस्स आयाममझे पप्णत्ते ? मावाथ
है क्यों कि चारों दिशि में रत्नप्रभा की लम्बाइ चौडाइ एक राजु प्रमाण है और शर्कर प्रभ की लम्बाइ
चौडाइ अढी राज प्रमाण है. इस का विशेष विवेचन जीवाभिगम के दुसर नरक उद्देशे से जानना. यह है 12नीसग द्वार पूर्ण हुवा ।। ४ ॥ अब चौथा निरंतर द्वार कहते हैं, जो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के
नरकावासों की पास जो पृथ्वीकायादि रह हुवे हैं वे क्या महा कर्मवंत हैं ? यो सब अधिकार जावाभि९७१गम सूत्र से जानना, यावन् सातवी नरक पर्यंत स्थावर काय के जीवों महा कर्मवाले यावत् महा दुःख-१४
वाले हैं ॥ ५॥ अब लोक मध्य द्वार कहते हैं. अहो भगवन् : लोक का मध्य लम्बाइ में कहां कहा है ?
P8 पंचगंग विवाह पण्णनि (भगवती)
-तेरहवा शनक का चोथा उद्देशा 498