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________________ शब्दार्थना . यावत् रः रत्नप्रभा जा. यावत् णो नहीं म० महर्दिक अ: अलद्युति वाले ॥२॥ मरल शब्दार्थ: पुढवीओ परोप्परं भण्णति जाव रयणप्पभात्त जाव णो तहा महिड्डियतरा चेव अप्पजुत्तिय. तराचत्र ॥२॥ रयणप्पभा पुढधी णेरइयाणं भंते ! केरिलयं पुढवीफास पञ्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिटुं जाव अमणामं एवं जाव अहे सत्तमाए पुढवीए णेरइय एवं आउफासं एवं जाव वणस्सइ फासं ॥ ३ ॥ इमाणं भंते ! रयणप्पभा पुढवी दोच्चं सकरप्पभं पुढविं पणिहाय सव्व महतिया बाहल्लेणं सब खुाडया सव्वतेसु, भावार्थ | वैसे ही जानना. ऐसे ही सातों नरक का परस्पर जानना ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! रप्रभा पृथ्वी के नारकी कैसा पृथ्वी स्पर्श अनुभवते हुवे विचरने है ? अहो गौतम ! अनिष्ट यावत् अमनोज्ञ पृथ्वी स्पर्श वते हुवे रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी विचरते हैं. ऐसे ही मातबी नरक तक जामना. पृथ्वी स्पर्श जैसे अप्काय, तेउकाय, वायुकाय व वनस्पतिकाया का स्पर्श कहना. यह दूसरा द्वार हुगा ॥ ३ ॥ अब तीसरा प्रणिधिद्वार कहते हैं. यह रत्नप्रभा पथ्वी पृथ्वीविंड मेमरी शर्कर प्रभा पृथवी आश्री सब से बडी है क्यों कि रत्नप्रभा का एक लाख अस्सी हजार योजन का पृथ्वी पिंड है और शर्कर प्रभा का एक लाख बत्तीस हजार योजन का पृथ्वो पिंड है, और परिधि से रत्नप्रभा पृथ्वी शर्कर प्रशा आश्री मर से छोटी १ नारकी में तेजस्काय परमाधामी कृत है परंतु साक्षात नहीं है. मुनि श्री अमोलक . प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसाद जी * अनुवादक-वालब्रह्मच
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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