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शब्दार्थ |
भावार्थ
488* पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 4
बहुत लंबे णो नहीं म० वडा प्रवेशन ते ० उस ण नरक में णे नारकी पं० पांचवी धू० धूम्रप्रभा पु० { पृथ्वी के ने० नारकी से ५० महाकर्म वाले णो नहीं अ० अल्प कर्म वाले भ० अल्पऋद्धि वाले गो० नहीं म० महर्द्धिक पं० पांचवी धूः धूम्रप्रभा पु० पृथ्वी में ति० तीन णि० नरका वास स० लक्ष प०प्ररूपे ए० ऐसे ज० जैसे छ० छठी में भ० कहा ए० ऐसे स० सात पु० पृथ्वी का प० परस्पर भा० कहना चैत्र ४, णो तहा महप्पबेसणतरा चैत्र ४, तेसुणं णरएस रइया पंचमाए धूमप्पभा पुढवी नेरइएहिंतो महाकम्मतरा चेव ४, णो तहा अप्पकम्मतरा चैत्र ४, अपिढितराचे २ णो तहा महिड्डियतरा चैत्र २, पंचमाएणं धूमप्पभाए पुढवीए तिण णिरयावास सय सहस्सा पण्णत्ता, एवं जहा छट्ठीए भणिया एवं सत्तवि वाले नहीं हैं. छठी तमा पृथ्वी के नरकावास पांचवी धूम्रप्रभा के नरकावास से बहुत बडे, विस्तृत, अब{काशवाले व शून्य हैं. पांचवी नरक जैसे प्रवेशवाले, आकीर्ण, आकुल व अत्यंत संकीर्ण नहीं हैं. छठी नरक के नारकी पांचवी धूम्रप्रभा के नारकी से महा कर्म, क्रिया, आश्रय व वेदनावाले हैं परंतु अल्प कर्म, क्रिया, आश्रव व वेदनावाले नहीं हैं. अल्प ऋद्धिवाले व युतिवाले हैं परंतु महर्द्धिक व महा द्युतिवाले) नहीं हैं. पांचवी धूम्रप्रभा पृथ्वी में तीन लाख नरकावास कहे हैं. इस का वर्णन जैसे छठी का कहा
* तेरहवा शतक का चौथा उद्देशा 43
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