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शब्दार्थ
4 स० सातवी पु. पृथ्वी के ण. नरका वास से णो नहीं १० बहुत लम्ब म० बहुत चौडे
वाले आ० आकीर्ण ते. उस ण नरक में ण० नारकी अ० अधो स. सातवी पु० पृथ्वी । म० वडा वे Eसे अ० अल्प कर्म वाले अ० अल्पक्रिया वाले णो नहीं म० महाकर्म वाले म. महानि के णेनारकी
महदिक म. महायुति वाले णो नहीं अ० अल्पसद्ध वाले णो नहीं अ० अल्पद्यात प त. तमा पु. पृथ्वी के ण नरका वास पं० पांची ध० धूमप्रभा पु० पृथ्वी के ण नरवाल छ० छठी
णो तहा महत्तरा चेव महाविच्छिण्णतरा चेव ४. महप्पवसणतरा चेव का वास स म० चेव ४, तेसुणं णरएमु णेरइया अहे सत्तमाए पुढवीणरइहिता अप्पकम्म "इतरा अप्पकिरियतरा चेव; & णो तहा महाकम्मतरा चेव महाकिरियतरा चेव ४ सराव यतरा चेव, महाजुत्तियतरा चेव, णो तहा अप्पिढियतरा चेव णो तहा अप्पा माहाड्ढे
चेव॥ छट्ठीएणं तमाए पुढवीए गरगा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए णेरइएहित "त्तयतरा भावार्थ
नरकावासों से लम्बाइ चौदाइ में बहुत बडे नहीं हैं. वहत विस्तृत नहीं हैं, अवकाशवाले नही महत्तरा नहीं हैं परंतु बहुत प्रवेशवाले, आकीर्ण, आकुल व अत्यंत संकीर्ण हैं. उस नरक में नारकीहै व शून्य नारकी से अल्प कर्मवाले, अल्प क्रियावाले, अल्प आश्रव व अल्प वेदनावाले हैं परंतु महातवी नरक के पाश्रव व वेदनावाले नहीं हैं. महा ऋदिवाले व महा द्युतिवाले हैं; परंतु अल्प ऋद्धिवाले कर्म, क्रिया,
अल्पति
48 अनुवादक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ६
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमादजी *