________________
असंखेज वित्थडेमुवि एए ण भण्णति. अचरिमा अत्थि सेसं जहा गेवेज्जएमु असंखेज वित्थडे जाव असंखजा अचरिमा पण्णत्ता ॥ ९॥ चोयट्ठीएणं भंते ! असुर कुमारावाससयसहस्सेमु संखेजवित्थडे असुरकु-रावासेषु किं सम्मदिट्ठी असुरकुमारा उववज्जति, मिच्छदिट्ठी एवं जहा स्थणप्पभाएं तिणि आलावगा भणिया तहा असंखेज वित्थडेमुवि तिणि गमगा एवं जाव गेवेज्जावमाणे अणत्तर विमाणेसु
एवं चेव, णवरं तिमुवि आलाबएन मिच्छविट्ठी सम्म मच्छट्ठिीय ण भण्णति ससं भावाथरोयक विमान का संख्यात विस्तार का कहा वैने ही जानना. परंतु कृष्ण पक्षिक, अभवसिद्धिक, तीन
अज्ञानवाले, उत्पन्न नहीं होते हैं और चवते भी नहीं हैं और विद्यमान भी नहीं रहते हैं. अचरिम भी नहीं होते हैं यावत् संख्यात चरिम रहते हैं अख्यात विस्तार वाले में भी उक्त बोल कहना परंतु अचरिम हैं यावत् असंख्यात विस्तार वाले में असंख्यात अचम्मि कहे हवे हैं ॥९॥ अहाँ भगवन ! अमुर कुमार के भवनपति जाति के देवता के दौठ लाख थान में प्रख्यात योजन वाले भवन में क्या समदृष्टि असुर कुमार उत्पन्न होते हैं या मिथ्यादृष्ट उत्पन्न होत? जैसे रामभा में तीन आलापक, कहे वैसे ही यहां पर तीनों आलापक जानना. ऐसे ही असंख्यात योजन के विस्तारकाले में भी तीनों. आलायक जानना. ऐसे ही नवगैवेयक र अनुत्तर विमान तक} |
488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र का
4212 तरहया शतक का दूसरा उद्देशा
3gp