________________
vimurrywwwwwview
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
गोयमा ! पंच अणुत्तरविमाणा पण्णत्ता, तेणं भंते ! किं संखजवित्थडा असंखेजवित्थडाय ? गोयमा! संखेजवित्थडाय असंखेजवित्थडाय ॥ पंचमुणं भते! अणु रविमाणे संखेज वित्थडे विमाणे एगसमए केवइया अणुत्तरोववाइया उवबजति.केवइया सकलेस्ता उववजति पच्छा? तहव,गोयमा ! पंचमणं अणत्तर विमाणेसु संखेज विथडेस अणत्तर विमाणे एगसमएणं जहण्णण एक्कोवा दोवा तिणिवा उक्कोसेणं संखेजा अण तरोववाइया उक्वजंति, एवं जहा गविजग विमाणसु संखेज वित्थडेसु णवर कण्ह पक्खिया अभवसिद्धिया तिसु अण्णाणेसु एए ण उववजंति, ण चयंति, णवि पण्णत्तएस भाणियवा अचरिमावि खोडिज्जति, जाव संखेज्जा चस्मिा पण्णत्ता, सेसं तंव अनुत्तर विमान कितने कहे हैं ? अहा गौतम ! अनुत्तर विमान पांच कहे हैं. अहो भगवन् ! क्या वे संख्यात योजन के विस्तारवाले हैं या असंख्यात योजन के निस्तारवाले हैं ? अहो गौतम ! संख्यात योजन क विस्तारवाल हैं व असंख्यात योजर के विस्तारवाल हैं. अहो भगवन् ! पान अनुत्ता दिन म संख्यात योजन के विस्तारवाल :वमान में कितने अनुत्तरोपपातिक उत्पन्न होते हैं कितने शुक लेश्यावाले उत्पन्न होते हैं वगैरह पृच्छा ? अहो गौतम पांचों अनुत्तर विमा में संख्यात योजन के विस्तारवाले अत्तर विमान में एक समय में जघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट मंख्यात अनुत्तरोपपातिक उत्पन्न होते हैं. ऐसे ही
.. प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेव सहायनी मागप्रसादजी.
भावार्थ
2