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48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 488
2} गत्थि, जइ अस्थि जहण्णेणे एक्कोवा दोवा तिण्णिवा, उक्कोसेणं संखेजा पण्णता,
एवं माण माया. संखेज्जा लोभ कसायी पण्णत्ता, सेसं तंचेव, ति.सुवि गमएसु संखेज वित्थडेमु चत्तारि लेस्साओ भागियवाओ ॥ एवं असंखेज वित्थडेवि वरं तिमुवि गमएम असंखेज्जा भाणियब्वा जाव असंखेज्जा अचरिमा पण्णत्ता ॥ ४ ॥ केवइयाणं भंते ! णाग कुमारावास एवं जाव थणिय कुमारावास णवरं जत्थ जत्तिया भवणा ॥ ५ ॥ केवइयाण भंते ! वाणमंतरावास सयसहस्सा पण्णता ?
गोयमा ! असंखेजा वाणमंतरावास सयसहस्सा पण्णत्ता ॥ तेणं भंते ! किं संखेज मान, माया लोम कषायी सख्याते जानना. संख्यात योजन के विस्तार वाले आवासके तीनों गमा में चार लेश्याओं कही. जैसे संख्यात का कहा वैसे ही असंख्यात का जानना परंतु इस में तीनों गमा अमख्यात कहना. यावत् असंख्यात अचरिम ॥४॥ ऐसे ही नाग कुमार से स्थनित कुमार तक
न में जितने आवास होवे उतना कहना. और तीनों गमा संख्यात असंख्यात योजन के आश्री असर कुमार जैसे जानना ॥५॥ अहो भगवन् ! वाणव्यंतर के आवास कितने कहे हैं ? अहो गौतम ! माणपतर के आवास असंख्यात लाख कहे हैं। अझे भाबर! क्या वे संख्यातः योजन के विस्तारवाले।
तेरहरा शतक का दूसरा उद्देशा