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णेरइएसु उववंजंति? हंता गोयमा ! जाव उनवजंति । से केणटेणं जाव उववजंति? गोयमा ! लेस्सटाणेसु संकिलिस्समाणेसु विसुज्झमाणेसु णीललेस्सं परिणमइ, णीललेस्सं परिणमइत्ता; णीललेस्सेसु णेरइएसु. उववजति, से तेणटेणं गोयमा ! जाव उज्जतिः ॥ सेणूणं भंते ! कण्हलेस्से णीललेस्से जाव भवित्ता काउलेस्लेसु णेरइएमु उववज्जति ? एवं जहा णीललेस्साए तहा काउलेस्साएवि भाणियव्वा जाव उववज्जति सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ रसम सयस्स पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १३ ॥ १ ॥
4.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 200
लेण्यापने परिणमे फीर कृष्ण लेश्यावाली नरक में जाकर उत्पन्न होवे. अहो गौतम: इस कारन से । कहा है कि कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्यावाले होकर कृष्ण लेश्यावाले नारकी उत्पन्न होवें. अहो भगवन कृष्णलेशी यावत् शक्ललेशी बनकर क्या-नीललशी नारकी में उत्पन्न होवे? हां गौतम! उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! किस कारन से उत्पन्न होवे? अहो गौतम ! लेन्या के स्थान भेद में अशुद्ध लेश्या में विशुद्ध होता है फीर नील लेश्या में परिणमकर नीललेश्यावंत नारकी में उत्पन्न होवे. इस तरह कृष्ण यावत् शक्ल लेश्यावाले नील लेशी नस्क में उत्पन्न होवे. अहो भगवन ! कृष्ण लेशी, नील लेशी यावत्ब शुक्ल लशी होकर कापोत लेश्यापने क्या उत्पन्न होवे? हां गौतम ! उत्पन्न होवे वगैरह सब कथन नीलई लेश्या जैसे कहना. अहो भगवन् ! आप क वचन सत्य हैं. यह तेरहवा शतक का प्रथम उद्देशान मंपूर्ण हुवा ॥ १३ ॥ १ ॥
*प्रकाशक राजाबहादूर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी **