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सूत्र
भावार्थ
++ पंचमांग वहाव पण्णति ( भगवती ) सूत्र 480
भाणि
॥ १३ ॥ इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए 'पुढबीए तीसाए णिरयावास
सय सहस्से संखेज्जवित्थडेसु णरएसु किं सम्मद्दिट्टी णेरड्या उववज्जंति, मिच्छाद्दट्ठी रइया उववजंति, सम्मामिच्छद्दिट्ठी णेरइया उववज्जंति ? गोयमा ! सम्मद्दिट्ठी णेरइया उबवजंति, मिच्छद्दिट्ठी णेरड्या उववज्जंति, जो सम्मामिच्छद्दिट्ठी रइया उववजंति ॥ इमीसेणं भंते ! रयणसभा पुढवीए तीसाए णिरयावास . सय सहस्से संखेज्ज वित्थंडसु णरएसु किं सम्मद्दिट्ठी णेरड्या उन्हंति ? एवं चेव ॥ १४ ॥ ॥ इमीसेणं भंते ! रयणष्पभाए पुढवीए तीसाए णिरयावास सय सहस्से सु ( उत्पन्न होते हैं और चवते हैं || १३ || अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में क्या समदृष्टि नारकी उत्पन्न { होते हैं, मिध्यादृष्टि नारकी उत्पन्न होते हैं या सममिध्यादृष्टि नारकी उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम समदृष्टि नारकी उत्पन्न होते हैं मिथ्यादृष्टि नारकी उत्पन्न होते हैं परंतु सममिथ्यादृष्टि नारकी नहीं उत्पन्न { होते हैं. अहाँ भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावार में से क्या समदृष्टि नारकी उद्वर्तते मिथ्यादृष्टि नारकी उद्वर्तते हैं या सम मिथ्यादृष्टि नारकी उद्धर्तेते हैं ? अहो गौतम ! जैसे उत्पन्न होने का कहा वैसे ही उद्वर्तने का जानना || १४ || अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरका - ?
तेरहवा शतक का पहिला उद्देशा -
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