________________
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी.
गिरयावाससयसहस्से पण्णत्ते सेसं जहा पंकप्पभाए ॥ १२ ॥ अहे सत्तमाएणं भंते ! पुढवीए कइ अणुत्तरा महतिमहालया महाणिरया वासापण्णत्ता ? गोयमा ! पंच अणुत्तर जाब अप्पइट्टाणे ॥ सेणं भंते ! किं संखेज वित्थडा असंखेज वित्थडा ? गोयमा ! संखेज वित्थडेय असंखेजवित्थडाय ॥ अहे सत्तमाएणं भंते ! पुढवीए पंचसु अणुत्तरे महति महालया जाव महाणिरएमु संखेज वित्थडे णरए एगसमएणं केवइया एवं जहा पंकप्पभाए, णवरं तिसु णाणेसु ण उववजंति, ण
उव्वदंति, पण्णत्ताएसु तहेव अत्थि ॥ एवं असंखेज वित्थडेसुवि, गवरं असंखजा भगवन् ! तम पृथ्वी में कितने नरकाबास कहे हैं ? अहो गोतम ! पांच कम एक लाख नरकावास कहे हैं शेष सब पंक प्रभा जैस जानना १२॥ नीचे की मातवी पृथ्वी में कितने बड़े महा नरक्रावास कहे अहो गौतम! पांच अनुत्तर नरकावान कहे हैं. अहो भगवन् ! क्या वे संख्यात योजन के विस्तारवाले हैं या असंख्यात योजन के विस्तारवाले हैं ? अहो गौतम ! संख्यात योजन के विस्तारवाले और असं ख्यात योजन के विस्तारवाले हैं. इस का सब अधिकार पंक प्रभा जैसे कहना परंतु व तीन ज्ञान में उत्पन्न नहीं होते हैं वैने ही तीन ज्ञान में चवते नहीं हैं. असंख्यात योजन के विस्तारवाले में असंख्यात
प्रकाशक-राजाबहादुरल ला सुखदव सहायजी ज्वालामसादजी *
भावार्थ
।