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सूत्र
भावार्थ
8 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
असंखेज वित्थड़ा, एवं जहा रयणप्पभाए तहा : सक्करष्पभाएवि णवरं असण्णी तिसुवि गमएस नभणति, सेसं तंचेव ॥ ८ ॥ वालुयप्पभाएणं पुच्छा ? गोयमा ! परसरियावास सयसहस्सा पण्णत्ता, सेसं जहा सकरप्पभाए, णाणत्तं लेस्सासु लेस्साओ जहा पदमसए ॥ ९ ॥ पंकप्पभाएणं भंते ! णिरयावास सय सहस्सा पुच्छा ? गोयमा ! दस णिरयावामसयसहस्सा पण्णत्ता, एवं जहा सकरप्पभाए, णवरं ओहिणाणी ओहिदंसणी ण उव्वहंति, सेसं तंचेव ॥ १० ॥ धूमप्पभाएणं पुच्छा ? गोयमा ! तिण्णि णिरयावासस्यसहस्सा एवं जहा पंकप्पभाए ॥ ११ ॥ तमाएणं भंते! पुढवीए केवइया णिरयावास पुच्छा ? गोयमा ! एगे पंचणे गौतम ! जैसे रत्नप्रभा कहा वैसे ही शर्कर प्रभा का जानना. परंतु असंज्ञी तीनों आलापक में कहना { नहीं ॥ ८ ॥ वालु प्रभा की पृच्छा बालु प्रभा में १५ लाख नरकावास कहे शेष सब अधिकार रत्नप्रभा { जैसे कहना लेश्या में जो भिन्नता है वह प्रथम शतक से जानना ॥ १ ॥ पंक प्रभा में दश लाख नरकावास हैं इस का अधिकार भी शर्कर प्रभा जैसे कहना परंतु इन में से अवधि ज्ञानी व अवधिदर्शनी उद्वर्तते नहीं ॥ १० ॥ धूत्रमभा में तीन लाख नरकवास हैं उस का सब कथन पंकममा जैसे कहना ॥११॥ अहो
4- तेरहवा शतक का पहिला उद्देशा 498
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