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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
वित्थडेसु णरएसु एगसमएणं जहण्णेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा उक्कोसेणं असंखेजा णेरइया उववजंति, एवं जहेव संखेज वित्थडेसु तिण्णिगमा पण्णत्ता तहा असंखेज वित्थडेसुवि तिण्णि भाणियव्वा, णवरं असंखेजा भाणियव्वा सेसं तंचेव जाव असोज्जा अचरिमा णाणत्तं लेस्सासु लेस्साओ जहा पढमसए, णवरं संखेज्ज वित्थडसुवि असंखेज वित्थडसुवि ओहिणाणी ओहिदसणी संखेजा उवद्यावे यव्वा सेसं तंचेव ॥७॥ सकरप्पभाएणं भंते ! पुढवीए केवइया णिरयावासा पुच्छा ?
गोयमा ! पणवीसं णिरयावास सयसहस्सा, ॥ तेणं भंते ! किं संखेज वित्थडा एक दो तीन उत्कृष्ट असंख्यात नारकी उत्पन्न होते हैं ऐसे ही जैसे संख्यात योजन विस्तारवाले के तीन गमा कहे वैसे ही असंख्यात योजन के विस्तारवाले को तीन गमा जानना. विशेष में असंख्यात कहना शेष सब असंख्यात अचरिम तक जानना. लेश्या का प्रथम शतक में कहा वैसा जानना. अवधि बानी व अवघि दर्शनी संख्यात व असंख्यात योजनवाले नरकावास में से संख्यात उद्धर्तते हैं॥७॥ अहो भगवन् ! शर्कर प्रभा में कितने लाख नरकावास कहे? अहो गौतम! शर्कर प्रभा में पञ्चीस लाख नरकावास कहे.. भगवन् : क्या वे संख्यात योजन के विस्तारवाले हैं या असंख्यात योजन के विस्तारवाले हैं ? अहो..
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *