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________________ पंचमा विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 4980 एक्कोवा दोवा तिण्णिवा उक्कोसेणे संखेजा काय जोगी उव्वटंति, एवं सागारोवउत्तावि, एवं अणामारोव उत्तावि, ॥ ५ ॥ इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए णिरयावास सय सहस्सेसु संखेज्ज वित्थडेसु णरएसु केवइया णेरइया पण्णत्ता, केवइया काउलेस्सा पण्णत्ता जाव केवइया अणागारोवउत्ता पण्णत्ता ३९, केवइया अणंतरोववण्णमा पण्णत्ता, केवइया परंपरोववण्णगा पण्णत्ता, केवइया अणंतरोबगाढा पण्णत्ता, केवइया परंपरोवगाढा पण्णत्ता, केवइया अणंतराहास पण्णचा, केवइया परंपरपहारा पण्णत्ता, केवड्या अणंतर पज्जत्ता पण्णत्ता, केवइया योगी नहीं उर्तते हैं और काय योगी जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात उद्वर्तते हैं. ऐसे ही साकारो पयोग और अनाकारोपयोग का जानना ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! इस रत्नपभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावास में से संख्यात योजन के विस्तारवाले नरकाबास में किसने ना की यावत् अनाकारोपयुक्त रहे हुवे हैं और कितने अनंतर उत्पन्न, कितने परंपरा से उत्पन्न, कितने अनंतर अवगाढ, कितने परंपरा अवगाढ, कितने अनतर आहारी, कितने परंपरा आहारी, कितने अनंतर पर्याप्त, कितने परंपरा पर्याप्त, कितने चरिम और कितने अचरिम रहे हुवे हैं ? अहो गौतम ! इस रस्लममा पृथ्वी के तीस लाख नरकावास में 31 तेरहवा शतकका पहिला उद्देशा **
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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