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________________ सूत्र भावार्थ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी raiar दोवा तिणिवा उक्कोसेणं संखेजा काउलेस्सा उववजंति, जहणेणं एकोवा दोवा तिणिवा उक्कोसेणं संखेज्जा कण्हपक्खिया उबवज्जंति, एवं सुक्कपक्खियात्रि एवं सणी, एवं असण्णीवि, एवं भवसिद्धियावि, एवं अभवसिद्धिया, आभिणिवोहिगाणी सुअणाणी, ओहिणाणी, मइअण्णाणी सुअ अण्णाणी; त्रिभंगणाणी एवं चेत्र, चक्खुदंसणी ण उववज्जंति, जहण्णेणं एक्कोवा दोवा तिणिवा उक्कोसेणं संखेज्जा अचक्खुदंसणी उववज्जंति, एवं ओहिदंसणीवि, एवं आहारसण्णोत्रउत्तावि जात्र परिह सोउत्तावि, इत्थीवेदगा न उत्रवज्जंति, पुरिसवेदगा न उववज्जंति, जहणणं एक्कोवा दोत्रा तिष्णिवा उक्कोसेणं संखेज्जा नपुंसगवेदगा उववज्जंति, एवं कोहकसायी जाव लोभ कसायी, सोइंदिय उवउत्तान उवत्रजंति एवं जाव फासिंदियोवउत्ता न होते हैं.. ऐसे ही अवधि दर्शनी, आहार संज्ञा वाले, भयसंज्ञा वाले, मैथुन संज्ञा वाले, परिग्रह संज्ञा वाले {का आनना. स्त्री वेदी, पुरुष वेदी उत्पन्न नहीं होते हैं क्यों की नरक में दोनों वेद नहीं हैं. जघन्य एक {दो तीन चार उत्कृष्ट संख्याते नपुंसक वेदी. ऐसे ही क्रोध कषायी यावत् लोभ कषायी का जानना. श्रीषेन्द्रिय वाले यावत् स्पर्शेन्द्रिय वाले उत्पन्न नहीं होते हैं नोइन्द्रिय वाले जधन्य एक दो तीन उत्कृष्ट *_प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी * ૧૮૦૦
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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