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48 अनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
- केवइया आभिणियोहियणाणी उववजंति ९, केवइया सुयणा उववजति १०,
केवइया ओहिणाणी उववजंति ११, केवइया मइअण्णाणी उववजंति १२, केवइया मुअ अण्णाणी उववजति १३, केवइया विभंगणाणी उबवजंति १४, केवइया चक्खुदसणी उववजंति , १५, केवइया अचक्खुदंसणी उववजंति १६, केवइया ओहिदसणी उववज्जति ५७, केवइया आहारसण्णोवउत्ता उबवजति १८, केवइया भयसण्णोवउत्ता उववजति १९, केवइया मेहण सण्णोव उत्ता उववजंति २०, केवइया परिग्गह सण्णोवउत्ता उववजति २१, कंवइया इत्थेिवदगा उववजंति २२, शुक्ल पक्ष वाले उत्पन्न होते हैं, कितने. संज्ञी उत्पन्न होते हैं. 'किंतने असंज्ञी उत्पन्न होते हैं, कितने भव सिद्धिक उत्पन्न होते हैं, कितने अभवसिद्धिक उत्पन्न होते हैं, कितने आभिनिवोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधि ज्ञानी, मति अज्ञानी, श्रुत अज्ञानी, विभंग ज्ञानी, चक्षदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधि दर्शनी आहार संज्ञा वाले, भय संज्ञा वाले, मैथुन संज्ञा वाले, परिग्रह संज्ञा वाले, स्त्री वेदक, पुरुष वेदक, नपुंसक वेदक क्रोध कपायी, मान कपायी, माया कषायी, लोभ कषायी, श्रोत्रेन्द्रियवाले यावत् स्पर्शेन्द्रियवाले, नो इन्द्रिय बाले, मन योगी, बचन योगी, काय योगी, सागारोपयुक्त, और अनाकारोपयुक्त उत्पन्न होते हैं ? अहो।
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ