SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1815
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र भावार्थ * पंचमांग विवाह पण्णास ( भगवती ) सूत्र +48 णो आयातिय ? गोयमा ! आयातिय अप्पणी आदिट्ठे आया, परस्स आदिट्ठे णो आया, तदुभय आदिट्ठे अवत्तव्यं, रयणप्पभा पुढवी आयातिय णो आयातिय से तेणट्टेणं तंचेत्र जाव णो आयातिय ॥ आया भंते ! सक्करप्पभा पुढवी जहा रयणप्पभा पुढवी तहा सक्करप्पभावि एवं जाव अहे सत्तमाए || आया भंते ! सोहम्मे कप्पे पुच्छा ? गोयमा ! सोहम्मे कप्पे सिय आया सिय जो आया जाव 'णो आयातिय; से केणट्टेणं भंते ! जाव णो आयातिय ? गोयमा ! अप्पो आदिट्ठे आया, परस्त्र आदिट्ठे णो आया, तदुभय आदिट्ठे अवतव्वं, आयातिय णो आयाअसद्रूपा है और क्वचित् सद्रूपा व असद्रूपा पने करने को अशक्य वस्तु है. अहो भगवन् ! किस { कारन से ऐसा कहा गया है कि रत्नप्रभा पृथ्वी क्वचित् मद्रूपा काचित् असद्रूपा और क्वचित् सद्रूप व असद्रूप पने करने में अशक्य वस्तु है ? अहो गौतम ! रत्नप्रभा स्वतः के वर्णादि पर्याय अर्थात् स्त्रपर्याय अपेक्षा से आत्मा है अन्य के वर्णादि पर्याय की अपेक्षा से अनात्मा असद्रूपा है और दोनों { की अपेक्षा से आत्मा अनात्मा करने में अशक्य वस्तु है. अर्थात् रत्नप्रभा पृथ्वी क्वचित् आत्मा क्वचित् {नो आत्मा है. इस से अहो गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी क्वचित् सद्रूप्रा क्वचित असद्रूपा और सदसद्रूप पने { 4+ बारहवा शतक का दशना उद्देशा 40380+ १७८५
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy