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सूत्र
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श्री अमोलक ऋषिजी
अस्थि, जस्स पुण वीरियाता तस्स चरित्ताया सिय अस्थि सिय जत्थि ॥ ३ ॥ एयासिणं भंते ! दवियाताणं कसायाताणं जाव वीरियाताणं कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहियावा? गोयमा! सव्वत्थावा चरित्ताया, णाणायाओ अणंत गुणाओ, कसायायाओ अणंतगुणाओ जोगायाओ विसेसाहियाओ, वीरियाताओ विसेसाहियाओ, उवओग दविय दसणाताओ तिण्णिवि तुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥ ४ ॥ आया भंते ! णाणे अण्णे और वीर्यात्मा को ज्ञानात्मा की नियमा संसारी सिद्ध आश्री. यह ज्ञानात्मा का कथन किया. दर्शन आत्मा को चारित्र व वीर्यात्मा की भजना है और चारित्र व वीर्यात्मा को दर्शनात्मा की नियमा है. चारित्रात्मा वीर्यात्मा की नियमा और वीर्यात्मा को चारित्रात्मा की भजना है विरति अविरति आश्री ॥ ३ ॥ अहो । भगवन् ! इन द्रव्यात्मा कषायात्मा यावत् वीर्यात्मा में से कौन किस से अल्प बहुत यावत् विशेषाधिक है अहो गौतम ! सब से थोडे चारित्रात्मा क्यों कि उत्कृष्ट साधु नव क्रोड रहते हैं इस से ज्ञानात्मावाले अनंतगुने सिद्ध आश्री, इस से कषायात्मा अनंतगुने वनस्पति आश्री, इम से योगात्मा विशेषाधिक तेरहवा गुणस्थान आश्री, इस से वीर्यात्मा विशेषाधिक चौदहवा गुणस्थान आश्री, इस से उपयोगात्मा, द्रव्यात्मा वन र्शनात्मा ये तीनों परस्पर तुल्य और विशेषाधिक क्यों कि यह तीनों सब में होते हैं॥४॥ अहो भग
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी