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14 सिय पत्थि ॥ जस्स पुण चरित्ताया तस्स णाणाया णियमं अत्थि ॥ णाणाता वीरि. म याता दोवि परोप्परं भयणाए, जस्स दंसणाया तस्स उवरिमाओ दोवि भयणाए, जस्स
पुण ताओ तस्स दसणाया णियमं अत्थि, जस्स चरित्ताया तस्स वीरियाता णियमं | १७८१ चारित्र आत्मा की भजना है अविरति व विरति आश्री और चारित्रात्मा को योगात्मा की भजना है। सयोगी अयोगी होने से, योगात्मा को वीर्यात्मा की नियमा है और वीर्यात्मा को योगात्मा की भजना है. यह योगात्मा का कथन किया. अब उपयोगात्मा का कथन करते हैं जैसे द्रव्यात्मा का कहा वैसे उपयोगात्मा का जानना. अर्थात् उपयोगात्मा को ज्ञानात्मा की भजना है सम्यग् दृष्टि व मिथ्या दृष्टि होने से और ज्ञानात्मा को उपयोगात्मा की नियमा है. उपयोगात्मा व दर्शनात्मा दोनों की परस्पर नियमा है। अविनाभूत संबंध होने से उपयोगात्मा को चारित्रात्मा की भजना और चारित्रात्मा को उपयोगात्मा की नियमा है. उपयोगात्मा को वीर्यात्मा की भजना है संसारी व सिद्ध आश्री और वीर्याला को उपयोगात्मा की नियमा है. यह उपयोगात्मा का कथन किया. अब ज्ञानात्मा का कथन करते हैं. ज्ञानात्मा को दर्शनात्मा की नियमा, दर्शन शून्य जीव नहीं होने से और दर्शन आत्मा को ज्ञानात्मा की भजना सम्यग् । दृष्टि व मिथ्या दृष्टि आश्री. ज्ञानात्मा को चारित्रात्मा की भजना विरति अविरति आश्री और चारित्रास्मा को ज्ञानात्मा की नियमा ज्ञान विना चारित्र का उदय नहीं होने से. ज्ञानात्मा को वीर्यात्मा की भजना
पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
बारहवा शतकका दशवा उद्देश 882