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भावार्थ
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भाणियव्वा जहा दावयाताए वत्तव्यया भणिया तहा उवओगाताएवि उर्वरिलाहिं समं भाणियव्वा जस्स णाणाया तस्स दसणाया णियमं अत्थि, जस्स पुण दसणाया तस्स णाणाया भयणाए । जस णाणाया तस्स चरित्ताया. सिय अत्थि जैसे कषाय आत्मा को चारित्रामा क्वचिद है कषायी साधुवत् और कषायात्मा को चारित्रत्मा नहीं भी है संसारीक्त. चारित्रात्मा को कषायात्मा की भजना है क्यों की उपशांत व क्षीण कषायी को चारित्र है। परंतु कषाय नहीं है. और सकपायी अनगार को कषाय व चारित्र दोनों होते हैं. कषायात्मा व योगात्मा का जैसे कहा वैसे कषायात्मा व वीर्यात्मा का जानना अर्थात् कषायात्मा को वीर्यात्मा अवश्यमेव होता है और वीर्यात्माको कपायात्मा की भजना है क्यों कि कषाय मात्र दशवा गुणस्थान पर्यंत है यह कषायात्मा की साथ छ आत्मा का कहा. जैसे कषायात्मा की वक्तव्यता कही वैसे ही योगात्मा की वक्तव्यता उपर के पांच आत्मा की साथ कहना अर्थात् योगात्मा को उपयोगात्मा अवश्यमेव होता है और उपयोगास्माको योग आत्मा की भजना अयोगी सयोगीवत्. समदृष्टि योगात्मा को ज्ञानात्मा होता है और मिथ्यादृष्टि योगात्मा को ज्ञानात्मा नहीं होता है, और सयोगी ज्ञानात्मा को योगात्मा होता है और . अयोगी ज्ञानात्मा को योगात्मा नहीं है इस से दोनों की परस्पर भजना है. योगात्मा को दर्शनात्मा नियमा है दर्शन शून्य आत्मा नहीं होने से और दर्शवात्मा को योगात्मा की भजना है अयोगी भवस्था में. योगात्मा को
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.