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भाव
अत्थि सिय पत्थि॥ एवं उवओगाएविसमं कसायातायव्वा कसायाताणाणाताय परोप्पर दोवि भइयव्वाओ जहा कसायाताय उवओगायाय तहा कसायाया,दसणाताय कसायाता चरित्ताताय दोवि परोप्परं भइयव्वाओ, जहा कसायाता जोगाता तहा कसायाता वीरियाताय
भाणियव्याओ एवं जहा कसायाता बत्तव्वया भणिया तहा जोगायाएवि उवरिमाहि समं में करण वीर्य है वहां द्रव्यात्मा अवश्य ही है. इस तरह द्रव्यात्मा की साथ अन्य सात आत्माओं
संबंध कहा.॥२॥अब कषायात्मा की साथ अन्य छ का प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! क्या कषायात्मा वाले टको योगात्मा और योगात्मा वाले को कपायात्मा है ? अहो गौतम ! जिसको कषायात्मा है उस को योगात्मा
की नियमा है और योगात्मावाले को कषायात्पा की भनना है क्यों की कषाय दशना गुणस्थान पर्यंत है और योग तेरहवा गुणस्थान पर्यंत है. कषाय आत्मा वाले को उपयोग आत्मा अवश्यमेव होता है क्यों कि उपयोग शून्य आत्मा कदापि होता नहीं है और उपयोग आत्मा वाले को कषायात्मा की भजना होती है क्यों की उपशांत कषायी और क्षीण कषायी को उपयोग होता है परंतु कषाय नहीं होती है. कषायात्मा को ज्ञानात्मा की भजना है। और ज्ञानात्मा को कषायात्मा की भनना है क्यों की सम्यक् दृष्टि कषायात्मा को ज्ञानात्मा है और मिथ्यांदृष्टि कषायात्मा को ज्ञानात्मा नहीं है. वैसे ही उपशांत व क्षीण कषायी ज्ञानात्मा को कषाय नहीं । है और शेष संसारी कषाय ज्ञानात्मा को कषायात्मा होता है.. कषायात्मा को दर्शनाला की नियमा है क्यों की दर्शन शून्य आत्मा नहीं होता है और दर्शनात्मा को कषायात्मा की भ.न. है उपयोग आस्मा
428 पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र Page
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