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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
अथि, जस्सवि ईसणाता तस्स दवियाता पियम अत्थि ॥ जस्स दवियाता तस्स घरित्ताया भयणाए जस्स पुण चरित्ताता तस्स दवियाता णियमं आत्थि ॥ एवं वीरियाता एवि समं ॥ २ ।। जस्सणं भंते ! कसायाता तस्स जोगाया पुच्छा ? गोयमा ! जस्स
कसायाता तस्स जोगाता णियमं अत्थि, जस्स पुण जोगाया तस्स कसायाता सिय उन दोनों को अविनाभूत संबंध है. अहो भगवन् ! जिस को द्रव्यात्मा है उम को क्या ज्ञानात्मा और ज्ञानात्मा वाले को क्या द्रव्यात्मा है ? अहो गौतम ! जिस को द्रव्य आत्मा है उस को ज्ञानात्मा की
है क्यों की सम्यग् दृष्टि को ज्ञानात्मा होता है और जो समदृष्टि होते हैं उन को ज्ञानात्मा द्रव्यात्मा दोनों होते हैं मिथ्या दृष्टि को मात्र द्रव्य आत्मा होता है और ज्ञानात्मा वाले को द्रव्यात्मा की नियमा है क्यों की ज्ञानमय आत्मा है. जिप्त को द्रव्यात्मा होता है उस को दर्शनात्मा निश्चयही होता है और जिस को दर्शनात्मा होता है उम को द्रव्यात्मा निश्चय ही होता है क्यों कि दोनों अविना भूत हैं. द्रव्य आत्मा वाले को चारित्र आत्मा की भजना है क्यों कि विरति द्रव्यात्मा को चारित्र है और अविरति व सिद्धको चारित्र नहीं है और चारित्र आत्मा वाले को द्रव्यात्मा निश्चयकी है क्यों की द्रव्यात्मा बिना चारित्र नहीं ग्रहण किया जासकता है. द्रव्य आत्मा वाले को वीर्यात्मा की भजना है और वीर्यात्या वाले को द्रव्यात्मा की नियमा है, सिद्ध में द्रव्यात्मा है परंतु करण वीर्य का अभाव है और संसारी।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.