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सूत्र
भावार्थ
486+ पंचमांग रहा।व पण्णति ( भगवती ) सूत्र
या ॥ जस्सणं भंते ! दवियाता तस्स उवओगाता एवं सव्वत्थ पुच्छा भाणियन्त्रा ? गोयमा ! जस्स दत्रियाता तस्स उवओगाया नियमं अत्थि, जस्सकि उवओगाता
तस्सवि दत्रियाता नियमं अस्थि । जस्स दवियाता तस्स णाणाता भयणाए, जस्स पुण जाणता तस्स दवियाता नियमं अस्थि । जस्स. दवियाता तस्स दंसणाता नियमं
क्वचित होता है और काचित् नहीं भी होता है. क्योंकी अनुपशान्त कषायी को द्रव्यात्म व कषायात्मा दोनों हैं और उपशांत कपायी को कषायात्मा नहीं है परंतु द्रव्यात्मा है और जिस को किपायात्मा है उस को द्रव्य आत्मा निश्चय ही होता है. अह्मे भगवन् ! जिस को द्रव्य आत्मा है उस को क्या योगात्मा है और जिस को योगात्मा है उस क्या द्रव्यात्मा है ? अहो गौतम ! जो सयोगी है उस
द्रव्यात्मा
व योग आत्मा दोनों हैं और जो अयोगी है उस को मात्र द्रव्य आत्मा है इस से द्रव्य आत्मा को योग आत्मा क्वचित् होता है और क्वचित् नहीं होता है और योग आत्मावाले को द्रव्य आत्मा अवश्य मेव होता है; क्यों की द्रव्यात्मा विना योगोंकी प्रवृत्ति नहीं है. अहो भगवन् ! द्रव्य आत्मा वाले को {क्या उपयोग आत्मा और उपयोग आत्मा वाले को क्या द्रव्य आत्मा होता है ? अहो गौतम ! जिन को ( द्रव्य आत्मा है उन को उपयोग आत्मा अवश्यमेव होता है और जिनको उपयोग आत्मा है उम को द्रव्य आत्मा अवश्यमेव होता है क्यों की जीव उपयोग लक्षण वाला कहाता है, और
8064408 बारहवा शतक का दशवा उद्देशा ++
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