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मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
भावार्थ
दवियाता, कसायाता, जोगायाता, उवओयाता, णाणत्ता, दसणाया, चरित्ताया, वीरियाता ॥ १ ॥ जस्मणं भंते ! दवियाता तस्सणं कसायाता, जस्स कसायाता तस्स दवियाता ? गोयमा ! जस्स दवियाता तस्स कसायाता सियअस्थि सियणत्थि, जस्स पुण कसायाया तस्स दवियाता णियमं अत्थि ॥ जस्सणं भंते ! दवियाता तस्स जोगाता एवं जहा दवियाता कसायाता भणिया तहा दवियाता जोगायायावि भाणित्रिकालानुगामी उपसर्जनी कृत कषायादि पर्यायरूप आत्मा सो द्रव्य आत्मा २ क्रोधादि कपाय विशिष्ट अ आत्मा सो कषाय आत्मा यह आत्मा अनुपशान्त कषायवंतको होता है ३ मन प्रति व्यापार रूप जो योग वह जिम को प्रधान आत्मा है सो योगात्मा यह योगवंत जीवों को होता है. ४ साकार अनाकार भेद मे उपयोग जिन को प्रधान है मो उपयोग आत्मा यह संसार व मिद्ध दोनों को होता है ५३ ज्ञान विशेष उपसर्जनी कृत दर्शनादि आत्मा सो ज्ञानात्मा यह सम्याग्दृष्टि को होता है ६ ऐसे ही दर्शन
आत्मा का जानना परंतु दर्शनात्मा सब जीवों को होता है ७ चारित्र आत्मा विरती को होता है और १८ उत्थानादि वीर्यरूप आत्मा सो वीर्यात्मा ॥१॥ अब इन आठों आत्मा का परस्पर संयोग बताते हैं. "अहो भगवन् ! जिस को द्रव्य आत्मां है उम को क्या कषाय आत्मा है अथवा जिस को
काय आत्मा है उसको क्या द्रव्य आत्मा है ? अहो गौतम ! जिसको द्रव्य आत्मा है उसको कपाय आत्मा
* मश: राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी मालाप्रसौंदजी *