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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 498
भावार्थ
सव्वत्थोवा अणुत्तरोवाइया भावदेवा, उपरिमगेवेज्जा भावदेवा संखेजगुणा, मझिमगेवेज्जा संखेजगुणा; हेट्ठिम गेवेज्जा संखेजगुणा, अच्चुयकप्पे देवा संखेजगुणा, जाव आणतकप्पे भावदेवा एवं जहा जीवाभिगमे तिविहे देवपुरिस अप्पाबहुयं जाव
१७७५ जोइसिया भावदेवा असंखेजगुणा ॥ १० ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ दुवालसम सयस्सयं
बमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १२ ॥ ९॥ . कइविहाणं भंते ! आता पण्णता ? गोयमा ! अट्टविहा आता पण्णसा, तंजहा अहो गौतम ! सब मे थोडे अनुत्तरोपपातिक भावदेव उस से उपर की गयक के भावदेव संख्यातगुने, उम से मध्यम ग्रेवेयक के भावदेव संख्यातगुने उस से नीचे की ग्रैवेयक के भावदेव संख्यातगुने उस से अच्यत देवलोकवाले संख्यातगने यावत् आनत देवलोक के भावदेव संख्यातगने इस तरह जैसे जीवाभिगम में देव पुरूष की अल्पाबहुत्व कहीं वैसे कहना. यावत् ज्योतिषी देव असंख्यातगुने. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह वारहवा शतक का नववा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १२ ॥ ९ ॥ 3 नववे उद्देशे में देवता का कथन किया. देव आत्मावाले होने से इस उद्देशे में आत्मा का कथन करते हैं, अहो भगवन् ! आत्मा के कितने भेद कहे हैं ? अहो मौतम ! जो अपर पर्याय को सतत जाता है. अथवा उसयोग लक्षण से जो सतत जानता है उसे आत्मा कहते हैं. इस के आठ भेद कहे हैं.. |
33. बारहवा शतक का दशवा उद्देशा <dai