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शब्दार्थ
श्री अमोलक ऋषिजी +
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के कैसे भा० भावदेव गो. गौतम जे. जो भ० भान गति वा वागव्यंतर जो० ज्योतिषी ३० वैमानिक * दे० देव दे० देवगति णा नाम गो० गोत्र क० कर्म वे० वेदते हैं से० वह ते० इसलिये जा. यावत् भा०१ भावदेव ॥ २॥ सरल शब्दार्थ
वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया देवा देवगइनामगोयाई कम्माइं वेदेति से तेणटेणं जाव भावदेवा ॥ २ ॥ भवियदव्वदेवाणं भंते ! कओहिंतो उववजंति- किं णेरइए हिंतो उववजंति, तिरिक्ख-मणुस्स देवहितो उववजंति ? गोयमा ! णेरइएहितो उववजंति तिरि-मणु-देवहितो उववति ॥ भेदो जहा वकंतीए, सव्वेसु उववातेयव्वा जाव अणुत्तरोववाइयत्ति, णवरं असंखेजवासाउय अकम्मभूमिग अंतरदीव सव्वट्ठ अरिहंत भगवंत होते हैं वे देवाधिदेव कहाते हैं. अहो भगवन्!भावदेवकिसे कहते हैं?अहो गौतम! जो भवनएति, वाणव्यंतर, ज्योतिषि व वैमानिक देव देवगति, नाम, गोत्र के कर्म वेदते हैं वे भावदेव कहाते हैं. यह दूसरा लक्षण द्वार हुवा ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! भविक द्रव्य देव कहां से उत्पन्न होते हैं क्या नरक से उत्पन्न होते हैं तिर्यच, मनुष्य व देव में से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम !' भविक द्रव्य देव नरक में से, तिर्यंच में से, मनुष्य व देव में से उत्पन्न होते हैं. इसका विशेष खुलासा पनवणा के छठा पद में कहा है वैसे कहना भावत् अनुत्तर विमान तक के देव उत्पन्न होते हैं.. परंतु असंख्यात वर्ष की स्थितिवाले. अकर्म
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावाथ
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